नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

न्याय का गणित- अरुंधति रॉय

 "काश! काश अगर परमाणु युद्ध एक और सामान्य युद्ध की ही तरह होता। काश! यह सामान्य बातों-राष्ट्रों और सीमाओं, देवताओं और इतिहास की तरह होता। काश! हममें से वे लोग जो इससे डरते हैं, नैतिक रूप से कायर होते, जो हमारे विश्वासों के लिए मरने को तैयार नहीं हैं। काश! परमाणु युद्ध ऐसा युद्ध होता जिसमें देश आपस में लड़ रहे होते और जनता आपस में। लेकिन ऐसा नहीं है। अगर कोई परमाणु युद्ध होता है तो हमारे दुश्मन चीन या अमेरिका, या यहाँ तक कि वे एक-दूसरे के नहीं हो सकते। खुद पृथ्वी ही हमारी दुश्मन हो जायेगी। मूल तत्व- आकाश, वायु, पृथ्वी, पवन और जल हमारे विरुद्ध हो जाएंगे। उनका प्रतिशोध भयावह होगा। हमारे शहर और जंगल, हमारे खेत और गाँव कई दिनों तक जलते रहेंगे। नदियाँ जहरीली हो जाएँगी। हवा आग हो जायेगी। बयार लपटों की तरह चलेगी। जब सारी जलनेवाली चीजें जल चुकी होंगी और आग बुझ जायेगी तो धुआँ उठेगा और सूरज को ढक लेगा। पृथ्वी अन्धकार में समा जाएगी। तब कोई दिन नहीं होगा। बस लम्बी, अन्तहीन रात होगी। तापमान हिमांक में चला जायेगा और परमाणविक शिशिर ऋतू शुरू हो जायेगी। पानी जहरीली बर्फ में तब्दील हो जायेगा। हममें से जिन्दा बचे लोग तब क्या करेंगे? झुलसे, अंधे, गंजे और बीमार हम कैंसर पीड़ित अपने बच्चों के कंकालों को संभाले कहाँ जाएँगे? हम क्या खायेंगे? क्या पीयेंगे? हम कैसे साँस लेंगे?" (न्याय का गणित- अरुंधति रॉय)



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