"एक श्रेष्ठ कविता बहु-संदर्भी होती है। यद्यपि कवि का संदर्भ सबका नहीं होता तथापि कविता में सबके संदर्भ हो सकते हैं। कई बार कविता में किसी एक पाठक, श्रोता, संपादक, अध्यापक, समीक्षक या आलोचक द्वारा तलाश किया गया संदर्भ अन्य दूसरे या सभी का संदर्भ नहीं होता। क्योंकि हर व्यक्ति के सोचने-विचारने, देखने-परखने का संदर्भ एक जैसा नहीं होता। फिर भी पाठक या श्रोता का अपना एक संदर्भ तो होता ही है। पाठक या श्रोता अपने उसी संदर्भ-संज्ञानता के बल पर कविता से अपना तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं।" (पढ़ते-पढ़ते : लिखते-लिखते, कवि की डायरी- जयप्रकाश मानस)
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