नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

पढ़ते-पढ़ते : लिखते-लिखते, कवि की डायरी- जयप्रकाश मानस

 "एक श्रेष्ठ कविता बहु-संदर्भी होती है। यद्यपि कवि का संदर्भ सबका नहीं होता तथापि कविता में सबके संदर्भ हो सकते हैं। कई बार कविता में किसी एक पाठक, श्रोता, संपादक, अध्यापक, समीक्षक या आलोचक द्वारा तलाश किया गया संदर्भ अन्य दूसरे या सभी का संदर्भ नहीं होता। क्योंकि हर व्यक्ति के सोचने-विचारने, देखने-परखने का संदर्भ एक जैसा नहीं होता। फिर भी पाठक या श्रोता का अपना एक संदर्भ तो होता ही है। पाठक या श्रोता अपने उसी संदर्भ-संज्ञानता के बल पर कविता से अपना तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं।" (पढ़ते-पढ़ते : लिखते-लिखते, कवि की डायरी- जयप्रकाश मानस)


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