नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 19 मार्च 2019

आर्थिक आंकड़ों में सरकारी हस्तक्षेप का आरोप

 अनौपचारिक चर्चाओं में वाणिज्य एवं मैनेजमेंट के वरिष्ठ शिक्षणों की 108 अर्थशास्त्रियों द्वारा उनके बयान को मीडिया पर सार्वजनिक किए जाने की आलोचना करने के बाद ही चर्चा की दिशा शेयर बाजार में आए उछाल की ओर मुड़ गई। इन प्राध्यापकों का कहना था कि अर्थव्यवस्था का मजबूती और विकास की सही दिशा का सूचक संवेदी सूचकांक सेंसेक्स है। उनका कहना था कि जिस तरह से मार्च महीने में शेयर बाजार में उछाल आया है, वह देश विदेश के करोड़ों छोटे-बड़े निवेशकों भारतीय कंपनियों  के शेयरों में भारी मात्रा में निवेश का परिणाम है। इन प्राध्यापकों का कहना था कि शेयर बाजार में पैसा लगाना जुआ या सट्टा नहीं है। इसके लिए अर्थव्यवस्था की मजबूती और राजनैतिक स्थिरता की वर्तमान स्थिति एवं भावी संभावनाओं को अध्ययन की जरूरत होती है। 
आर्थिक समाचार पत्रों में विगत 15 व 16 मार्च को दो समाचार प्रमुखता से छाए रहे। पहला, देश-विदेश के अर्थशास्त्रियों द्वारा आर्थिक आंकड़ों में मोदी सरकार द्वारा हस्तक्षेप को लेकर चिंता व्यक्त करने संबंधित समाचार था। दूसरा, भारत के शेयर बाजारों में पूरे सप्ताह निवेशकों द्वारा जोरदार की गई खरीदारी से आए उछाल से निवेशकों द्वारा कई गुना मुनाफा कमाए जाने की चर्चा रही। पहला समाचार,  भारतीय अर्थशास्त्रियों एवं छात्रों के बीच अधिक चर्चा का विषय रहा। देश-विदेश के जाने माने 108 अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों द्वारा संयुक्त बयान में आर्थिक आंकड़ों में मोदी सरकार द्वारा हस्तक्षेप को लेकर चिंता जाहिर करते हुए सांख्यिकी संगठनों की स्वतंत्रता बहाल करने की अपील की गई थी। इन अर्थशास्रियों को सन्देह है कि केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन ने मोदी सरकार के दबाव के कारण  2016-17 की जीडीपी में वृद्धि अनुमान को पहले के मुकाबले 1.1 प्रतिशत बढ़ाकर 8.2 प्रतिशत किया है।  इन अर्थशास्रियों को यह भी सन्देह है कि नेशनल सेम्पल सर्वे के 2017-18 के श्रम बल सर्वेक्षण आंकड़ों को लोकसभा चुनाव के सम्पन्न होने तक जानबूझ कर सार्वजनिक किए जाने से रोका गया है। बयान पर हस्ताक्षर करने वाले इन अर्थशास्त्रियों में देश-विदेश के शैक्षणिक एवं शोध संस्थानों से जुड़े हुए नामी-गिरामी अर्थशास्री व समाजशास्सी शामिल हैं। इनमें अमेरिका के जेम्स बॉयस, कनाडा के पैट्रिक फ्रांकोइस, तथा भारत के राकेश बसंत, सतीश देशपांडे, आर. रामकुमार, हेमा स्वामीनाथन, रोहित आजाद प्रमुख हैं।
 इन अर्थशास्रियों ने बयान में कहा है कि जनहित की नीतियां बनाने और जानकारी भरे सामाजिक विमर्श के लिए आंकड़ों को वैज्ञाानिक तरीकों से जुटाकर, उनका विश्लेषण उनके समय से जारी करना जनता की सेवा के समान है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सांख्यिकी जुटाने वाली और विश्लेषण करने वाली इन संस्थाओं की विश्वनीयता बनी रहे। विदेशों में इन संस्थाओं को पेशेवर स्वायत्ता दी जाती है। 
 ओडिशा में संबलपुर स्थित राज्य सरकार के गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय के प्लेटनम जुबली समारोहों की शृंखला में वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार अन्य स्थानीय कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के सिलसिले में मैं 14 मार्च से 16 मार्च की दोपहर तक संबलपुर में था। उद्यमिता विकास विषय पर विश्वविद्यालय की सेमीनार में उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि, पूर्ण अधिवेशन के सभापति तथा प्रथम सत्र में प्रमुख वक्ता, इन तीन सत्रों में उद्बोधनकर्ता के रूप में मुझे निमंत्रित किया गया था। सभी सत्रों में स्थानीय छात्र-छात्राओं की भी बड़ी सक्रिय भागीदारी रही। सत्रावसान के बाद जलपान के समय कुछ शिक्षकों ने मुझे स्थानीय समाचारपत्रों में प्रकाशित 108 अर्थशास्रियों की अपील दिखाते हुए पूछा कि क्या मैं छत्तीसगढ़ इकानॉमिक एसोसियेशन के अध्यक्ष होने के नाते इन अर्थशास्रियों के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान प्रारंभ करूंगा। मेरा उत्तर था कि इन प्रमुख अर्थशास्रियों ने व्यक्तिगत हैसियत से बयान पर हस्ताक्षर किए हैं। इसलिए मेरा अध्यक्ष के रूप में अभियान चलाने का कोई इरादा नहीं है।  वहां के शिक्षकों ने अर्थशास्रियों की इस अपील के सन्दर्भ में सवाल पूछे थे जिसमें उन्होंने भारत के सभी अर्थशास्रियों, सांख्यिकीविद् और स्वतंत्र शोधकर्ताओं से अपील की थी कि वे सरकार द्वारा प्रतिकूल आंकड़ों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज उठाने तथा सांख्यिकी संगठनों की संस्थागत स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए दबाव डालने के लिए उनका सार्वजनिक रूप से समर्थन करें।
 अनौपचारिक चर्चा के समय उपस्थित वरिष्ठ प्राध्यापकों ने उन प्रबुद्ध अर्थशास्त्रियों द्वारा अपने  बयान को देश-विदेश के मीडिया को सार्वजनिक किए जाने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस समय भारत और पाकिस्तान के बीच जो मीडिया वार चल रहा है,  इन अर्थशास्त्रियों ने पाकिस्तान को अनायास ही भारत के विरूद्ध यहां की अर्थव्यवस्था के बारे में मीडिया प्रोपेगंडा की सामग्री प्रदान कर दी है, जो इन अर्थशास्रियों के बयान को वहां के मीडिया कवरेज मिलने से जाहिर होता है।
  उल्लेखनीय है कि भारत के मीडिया में पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों के समर्थन के वर्णन के साथ-साथ इमरान खान सरकार की खस्ता वित्तीय स्थिति का प्रमुखता से जिक्र किया जाता है। उसी प्रकार चीन की विकास दर में गिरावट का भी भारतीय मीडिया में अच्छा स्थान मिलता है।  अनौपचारिक चर्चाओं में वाणिज्य एवं मैनेजमेंट के वरिष्ठ शिक्षकगणों की 108 अर्थशास्त्रियों द्वारा उनके बयान को मीडिया पर सार्वजनिक किए जाने की आलोचना करने के बाद ही चर्चा की दिशा शेयर बाजार में आए उछाल की ओर मुड़ गई। इन प्राध्यापकों का कहना था कि अर्थव्यवस्था का मजबूती और विकास की सही दिशा का सूचक संवेदी सूचकांक सेंसेक्स है। उनका कहना था कि जिस तरह से मार्च महीने में शेयर बाजार में उछाल आया है, वह देश विदेश के करोड़ों छोटे-बड़े निवेशकों भारतीय कंपनियों  के शेयरों में भारी मात्रा में निवेश का परिणाम है। इन प्राध्यापकों का कहना था कि शेयर बाजार में पैसा लगाना जुआ या सट्टा नहीं है।  इसके लिए अर्थव्यवस्था की मजबूती और राजनैतिक स्थिरता की वर्तमान स्थिति एवं भावी संभावनाओं को अध्ययन की जरूरत होती है।
 स्वयं के अध्ययन या स्टॉक मार्केट के विशेषज्ञों की सलाह पर संस्थागत व छोटे निवेशक करोड़ों रुपये का निवेश करते हैं और अर्थव्यवस्था की कमजोरी की हालत में बिकवाली करते हैं।  बम्बई स्टॉक एक्सचेंज का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स मार्च के पहले सप्ताह के अंतिम कारोबारी दिन के मुकाबले 15 मार्च को 1353 बिन्दु की जोरदार उछाल के साथ 38,000 बिन्दु पार कर बन्द हुआ। एक सप्ताह में 3.7 प्रतिशत की सेंसेक्स में हुई वृद्धि 6 माह के बाद नजर आई। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का 50 शेयरोंवाला सूचकांक निफ्टी 391 बिन्दु अर्थात 3.5 फीसदी तेजी के साथ 11,427 पर बन्द हुआ। नरेन्द्र मोदी सरकार की वापसी की संभावनाओं को देखते हुए निवेशक अच्छे प्रतिफल देने वाले शेयरों में हर दिन करोड़ों रुपये निवेश करते रहे।
इस सप्ताह सेंसेक्स की चोटी की 10 कंपनियों में से 8 कंपनियों का बाजार पूंजीकरण कुल मिलाकर 1.4 लाख करोड़ रुपए बढ़ा है। 18 मार्च के प्रात: सत्र में सेंसेक्स 38,000 बिन्दु के पार चल रहा है। मोदी सरकार की जीत की संभावनाओं को देशकर विदेशी संस्थागत एवं पोर्टफोलियो निवेशक 11 मार्च से हर दिन शेयरों की जोरदार खरीदी कर रहे हैं। शेयर बाजार ही नहीं इस सप्ताह डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 
(डॉ. हनुमंत यादव) 
समाज की बात -Samaj Ki Baat
 कृष्णधर शर्मा - Krishnadhar Sharma 

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