नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 28 सितंबर 2019

जनम अवधि- उषाकिरण खान

 'रात-दिन विदेशी अखबारों-पत्रिकाओं में गर्क रहते हो बरखुरदार! उससे निकाल-निकालकर जो मक्खन परोसते हो, वह बासी रहता है। अरे, पत्रकार बनना है तो धरती पर आओ, कुरसी से उतरो।' 

श्रीनाथ अकसर इस चौबट्टी गोष्ठी में बैठने को प्रेरित करता। एक-आध दिन गया भी, पर इसे रास नहीं आया। नुक्कड़ की धुँआती चाय की दुकान और धुँधुआते पत्रकार, लेखक, रंगकर्मी, जवान, बूढ़े। 

आत्मश्लाघा के मारे भूतपूर्व कुछ धुँआ उगलते नये उसे पैसिव इन्हेलर की तरह ग्रहण करने को विवश होते। प्रतिदिन कोई न कोई मुरगा बनता, जिसके सिर पर चाय पी जाती। मोटे मुरगे के सिर पर उससे ऊपर की भारी चीज पी जाती।" (जनम अवधि- उषाकिरण खान)





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