'कविता के नए प्रतिमानों की चर्चा के प्रसंग में प्रायः सभी नए लेखक इस बात पर एकमत दिखाई पड़ते हैं कि नए प्रतिमानों का संबंध रस से नहीं हो सकता; क्योंकि "कविता से रस का लुप्तीकरण अब विवादास्पद नहीं रह गया है।" "दिन में सैकड़ों बार 'हृदय की अनुभूति', हृदय की अनुभूति' चिल्लाएंगे, पर 'रस' का नाम सुनकर ऐसा मुँह बनाएंगे मानो उसे न जाने कितना पीछे छोड़ आये हैं। भलेमानुस इतना भी नहीं जानते कि हृदय की अनुभूति ही साहित्य में 'रस' और 'भाव' कहलाती है।"
आचार्य शुक्ल ने जहाँ रस को हृदय की अनुभूति के रूप में निरूपित किया है, वहीं आगे यह भी लिखा है कि "शब्द-शक्ति, रस और अलंकार, ये विषय-विभाग काव्य-समीक्षा के लिए इतने उपयोगी हैं कि इनको अंतर्भूत करके संसार की नई-पुरानी सब प्रकार की कविताओं की बहुत ही सूक्ष्म, मार्मिक और स्वच्छ आलोचना हो सकती है। रिचर्ड्स जैसे वर्तमान अंग्रेजी समालोचक किस प्रकार अब समीक्षा में बहुत-कुछ भारतीय पद्धति का अवलंबन करके कूड़ा-करकट हटा रहे हैं, वह मैं शब्द -शक्ति के प्रसंग में दिखा चुका हूँ।"
"शब्द-शक्ति के प्रसंग में आचार्य शुक्ल का कथन इस प्रकार है : "शब्द-शक्ति का विषय बड़े महत्व का है। वर्तमान साहित्य-सेवाओं को इसके संबंध में विचार-परंपरा जारी रखना चाहिए। काव्य की मीमांसा या स्वच्छ समीक्षा के लिए यह उपयोगी सिद्ध होगी।" (कविता के नये प्रतिमान- नामवर सिंह)
#साहित्य_की_सोहबत #पढ़ेंगे_तो_सीखेंगे
#हिंदीसाहित्य #साहित्य #कृष्णधरशर्मा
Samajkibaat समाज
की बात
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें