नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

काला पहाड़- भगवानदास मोरवाल

 "पहली माँग सुनते ही प्रधानमंत्री जी तड़ाक से नीचे आ गिरे।  आखिर वही हुआ जिसका उन्हें रह-रहकर डर सता रहा था। यह तो अच्छा हुआ जो आँखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ था वरना पता नहीं आँखों के ज़रिए कौन उनके मन की बात ताड़ जाता। उन्हें अपना कंठ सूखता-सा महसूस हुआ, उन्होंने तुरंत पानी से भरे गिलास को उठाया और एक ही साँस में रीता कर गए।  

दूसरी माँग के ख़त्म होते-होते प्रधानमंत्री जी का चेहरा ज़र्द पड़ने लगा। प्रधानमंत्री के दाएँ ओर बैठे राज्य के मुख्यमंत्री तक का ललाट पसीने से चू उठा।" (काला पहाड़- भगवानदास मोरवाल)



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