"पहली माँग सुनते ही प्रधानमंत्री जी तड़ाक से नीचे आ गिरे। आखिर वही हुआ जिसका उन्हें रह-रहकर डर सता रहा था। यह तो अच्छा हुआ जो आँखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ था वरना पता नहीं आँखों के ज़रिए कौन उनके मन की बात ताड़ जाता। उन्हें अपना कंठ सूखता-सा महसूस हुआ, उन्होंने तुरंत पानी से भरे गिलास को उठाया और एक ही साँस में रीता कर गए।
दूसरी माँग के ख़त्म होते-होते प्रधानमंत्री जी का चेहरा ज़र्द पड़ने लगा। प्रधानमंत्री के दाएँ ओर बैठे राज्य के मुख्यमंत्री तक का ललाट पसीने से चू उठा।" (काला पहाड़- भगवानदास मोरवाल)
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