नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

कोई अजनबी नहीं- शैलेश मटियानी

 "पीठ पर ठंड बरदाश्त की जा सकती है, लू बरदाश्त की जा सकती है, पीठ पर कँटीले के पत्ते, रेंगते हुए कनखजूरे बरदाश्त किये जा सकते हैं। इस हद तक बरदाश्त किये जा सकते हैं कि इनकी चुभन से सिर्फ अपनी देह में ही कँपकँपी, तपिश, या बेचैनी अनुभव हो। रामप्यारी अनुभव करती है कि पीठ पर चुभती हुई मरदों की हथेलियाँ और आँखें इस सीमा तक नहीं सही जा सकती हैं कि किसी एक ओर को मुँह फेरकर खड़ा रहा जा सके। (कोई अजनबी नहीं- शैलेश मटियानी)



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