हाल के समय में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं जब आंतरिक हिंसा बढ़ने पर व गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर खाद्य संकट भी उत्पन्न हो गया व स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी अनिवार्य सुविधाएं भी ध्वस्त हो गईं।
हाल के समय में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं जब आंतरिक हिंसा बढ़ने पर व गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर खाद्य संकट भी उत्पन्न हो गया व स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी अनिवार्य सुविधाएं भी ध्वस्त हो गईं। अत: म्यांमार को इस स्थिति से बचाने के लिए अभी से समुचित प्रयासों को अपनाना चाहिए। एक पड़ोसी देश होने के नाते और इस क्षेत्र की एक बड़ी ताकत होने के नाते भारत का भी कर्तव्य है कि वह इन प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए ताकि म्यांमार में लोकतंत्र की वापसी हो सके, हिंसा पर नियंत्रण लग सके व आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धि भी सुनिश्चित हो सके। म्यांमार (बर्मा) में जिस तरह से बड़े टकराव की स्थिति सैन्य बल और लोकतांत्रिक ताकतों के बीच आ गई है, उसका कोई आसान व शीघ्र समाधान अभी नजर नहीं आ रहा है।
यदि भारी बहुमत से जीत कर आए राजनीतिक दल से सरकार बनाने का अधिकार छीना जाए और उसके लोकप्रिय नेताओं को जेल में डाल दिया जाए तो उसके समर्थकों का सड़क पर उतरना निश्चित ही है और वही हो रहा है। यदि सेना को यही सब कुछ करना है तो चुनाव करवाने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है। दूसरी ओर इतना जोर-जुल्म करने के बाद सेना को यह भी आसान नहीं लग रहा है कि लोकतंत्र की ओर शीघ्र वापसी की जाए। दो महीने में ही 500 लोकतंत्र प्रहरियों को मार देना भयानक है। जहां एक ओर हाल ही में आरंभ हुआ संघर्ष लंबा खिंच सकता है, वहां अल्पसंख्यक समुदायों के अनेक संघर्ष म्यांमार में काफी समय से चलते रहे हैं। मौजूदा अराजकता के दौर में वे नए सिरे से जोर पकड़ सकते हैं और ऐसे हमलों के समाचार हाल में मिले भी हैं। इस तरह कई स्तरों पर हिंसा और दमन का दौर निकट भविष्य में म्यांमार में हावी हो सकता है और गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ऐसी स्थिति का अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ना स्वाभाविक है।
ऐसी अशान्त और अस्थिर स्थिति में स्वाभाविक है कि घरेलू और बाहरी निवेश बहुत कम होगा। तिस पर यदि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका जैसे देशों ने प्रतिबंध सख्त किए तो व्यापार पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। हालांकि चीन जैसे कुछ बड़े देशों का बाजार म्यांमार के लिए खुले रहने की पूरी संभावना है, पर जरूरी है कि निर्यात के स्थान कम होने पर निर्यातों से प्राप्त होने वाले मूल्य पर कुछ असर तो पड़ेगा ही। इसका दूसरा पक्ष यह है कि आयात के लिए विदेशी मुद्रा भी कम उपलब्ध होगी। हिंसा व दमन के बढ़ते दौर में सैन्य शासकों को सैन्य सामग्री के अधिक आयात की जरूरत पड़ेगी। धनी तबके भी अपने लिए आयात करते ही रहेंगे। अत: आयात कम करने की क्षमता का असर आम लोगों की जरूरतों की आपूर्ति पर अधिक पड़ सकता है।
दूसरी ओर स्थानीय स्तर के औद्योगिक और कृषि उत्पादन पर व कुछ जरूरी सेवाओं पर भी हिंसा के दौर में प्रतिकूल असर पड़ने की पूरी संभावना है। इस स्थिति में आजीविका के स्रोत भी कम होंगे व गरीबी बढ़ेगी। जहां एक ओर अनेक आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कम होगी वहां बहुत से लोगों की क्रय शक्ति में भी कमी आएगी। इन दोनों के मिले-जुले असर से लोगों की जीवन की कठिनाईयां बहुत बढ़ सकती हैं। वैसे साधारणत: म्यांमार को कृषि निर्यातक की दृष्टि से अतिरिक्त उत्पादन का देश माना जाता है। यहां की अधिकांश जनसंख्या कृषि से जुड़ी रही है। चावल मुख्य भोजन है। चावल के निर्यातक देश के रूप में भी म्यांमार की एक बड़ी पहचान बनी हुई है। इस आधार पर यह दावा किया जात है कि यहां भूख, अल्प-पोषण या कुपोषण की समस्या नहीं है या कम है। पर जरूरी नहीं है कि ऐसा हो।
कृषि निर्यात की अधिकता की स्थिति में भी कई देशों में भूख व कुपोषण की समस्या देखी गई है। कुछ समुदायों व स्थानों में यह समस्या अधिक हो सकती है जो भेदभाव का शिकार हैं। म्यांमार की हकीकत भी ऐसी स्थिति के नजदीक की है। इस स्थिति में यदि हिंसा का प्रसार अधिक होता है तो कृषि उत्पादन कम हो सकता है पर यह उत्पादन कम होने के बावजूद निर्यात अधिक बनाए रखने के प्रयास हो सकते हैं क्योंकि शासक वर्ग को आयातों के लिए विदेशी मुद्रा चाहिए। दूसरी ओर सैनिकों व सेना को समर्थन करने वाले संगठनों के लिए भी पर्याप्त खाद्य उपलब्धि काफी कम हो सकती है। विशेषकर जो क्षेत्र व स्थान विद्रोहियों के या विपक्षियों के गढ़ माने जाते हैं वहां के लिए खाद्य व अन्य आवश्यक उत्पादों की स्थिति कम हो सकती है। ऐसी स्थिति में अनेक स्थानों के लिए जरूरी दवाओं व स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धि सामान्य स्थिति से कहीं कम हो सकती है व इसका बहुत घातक असर पड़ सकता है। यदि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कड़े प्रतिबंध हो तो दवाओं की कमी और विकट हो सकती है। यदि सकारात्मक पहलू को देखें तो म्यांमार के पास तेल व गैस का अच्छा भंडार है, अन्य मूल्यवान खनिज हैं जिनसे अर्थव्यवस्था कुछ समय के लिए संभल सकती है पर प्रतिबंधों की स्थिति में इनसे आय अर्जन में भी कमी आ सकती है।
इन सभी विकट संभावनाओं से बचने के लिए जरूरी है कि अपेक्षाकृत आरंभिक स्थिति में ही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर यहां अमन-शांति व लोकतंत्र स्थापना के प्रयास तेज किए जाएं। इसके अतिरिक्त ग्रामीण समुदायों को चाहिए कि कठिन समय में वे खाद्य उत्पादन बढ़ाने के अधिक आत्म-निर्भर उपायों को अपनाएं ताकि हर स्थिति में कम से कम खाद्य सुरक्षा को बनाए रखा जा सके। विश्व खाद्य कार्यक्रम को भी खाद्य सहायता पहुंचाने के लिए म्यांमार की बदलती स्थिति पर नजर रखनी चाहिए। डाक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों के कुछ संगठन हिंसा-प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाते रहे हैं। उन्हें भी म्यांमार की जरूरतों को निकट भविष्य में ध्यान में रखना होगा। उम्मीद तो यह जरूर रखनी चाहिए कि निकट भविष्य में संकट सुलझ जाए, पर अधिक विकट स्थितियों में सहायता पहुंच सके इसकी तैयारी भी अभी से करनी चाहिए।
हाल के समय में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं जब आंतरिक हिंसा बढ़ने पर व गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर खाद्य संकट भी उत्पन्न हो गया व स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी अनिवार्य सुविधाएं भी ध्वस्त हो गईं। अत: म्यांमार को इस स्थिति से बचाने के लिए अभी से समुचित प्रयासों को अपनाना चाहिए। एक पड़ोसी देश होने के नाते और इस क्षेत्र की एक बड़ी ताकत होने के नाते भारत का भी कर्तव्य है कि वह इन प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए ताकि म्यांमार में लोकतंत्र की वापसी हो सके, हिंसा पर नियंत्रण लग सके व आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धि भी सुनिश्चित हो सके।
भारत डोगरा (साभार-देशबंधु)
समाज की बात Samaj Ki Baat कृष्णधर शर्मा KD Sharma
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