"माँ, मुझे इन दो दिनों में ही समझ आ गई कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है। उस कार्य को पूरा करने के लिए मुझे घर तो छोड़ना ही पड़ेगा।"
"कौन सा कार्य, पुत्र ?"
"स्वार्थी सत्ताधारियों का विनाश जब तक स्वार्थी तत्त्व सत्ता पकड़कर जनसामान्य का दोहन स्व-हित में करता रहेगा आपका पुत्र राम आराम से नहीं बैठ सकेगा।"
'ब्राह्मण होकर कब तक शस्त्र उठाएगा ?"
'माँ, शस्त्र का तो उपयोग ही रक्षा करना होता है। लुटता-पिटता आदमी किसे अपनी व्यथा सुनाएगा? मेरे दादाजी को विश्वास था कि सत्ता पर बैठा आदमी संवेदनशील होगा। उन्होंने सत्ताधीशों को समझा-बुझाकर जनसामान्य के हित में शासन संचालन की बात कही थी। उन्हें भरोसा था कि सत्ताधीश उनकी बात सुनेंगे; किंतु उन्हें ही अपने जीवनकाल में यह आभास हो गया कि एक बार शासन के सुखों का उपभोग करने के बाद कोई भी व्यक्ति न तो प्रजा का भला सोचता है, न अपना आसन छोड़ता है। वह सभी प्रकार के छल-छद्म रचकर अपने वंश को सत्ता में बनाए रखने का पूरा प्रयत्न करता है। मेरे दादाजी ऋचीक ऋषि अपना पूरा जोर लगाकर भी सत्ताधारियों के दुर्गुणों को दूर नहीं कर सके। "
" तो क्या तू अकेला इनसे लड़ता रहेगा ?"
"माँ, मैं अकेला नहीं हूँ। मैं सत्ताधीशों को समझाने नहीं जाऊँगा। मैं जाऊँगा उन दलित-गलित लोगों के पास, जिन्हें प्राय: भेड़-बकरी समझा जाता है। मैं उस कुचले हुए वर्ग को अपने पैरों पर खड़ा करूँगा।" (अपराजेय- श्यामसुंदर भट्ट)
#साहित्य_की_सोहबत #पढ़ेंगे_तो_सीखेंगे
#हिंदीसाहित्य #साहित्य #कृष्णधरशर्मा
Samajkibaat समाज
की बात