नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 19 जनवरी 2022

अपराजेय- श्यामसुंदर भट्ट

 "माँ, मुझे इन दो दिनों में ही समझ आ गई कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है। उस कार्य को पूरा करने के लिए मुझे घर तो छोड़ना ही पड़ेगा।"  

"कौन सा कार्य, पुत्र ?" 

"स्वार्थी सत्ताधारियों का विनाश जब तक स्वार्थी तत्त्व सत्ता पकड़कर जनसामान्य का दोहन स्व-हित में करता रहेगा आपका पुत्र राम आराम से नहीं बैठ सकेगा।"

 'ब्राह्मण होकर कब तक शस्त्र उठाएगा ?" 

'माँ, शस्त्र का तो उपयोग ही रक्षा करना होता है। लुटता-पिटता आदमी किसे अपनी व्यथा सुनाएगा? मेरे दादाजी को विश्वास था कि सत्ता पर बैठा आदमी संवेदनशील होगा। उन्होंने सत्ताधीशों को समझा-बुझाकर जनसामान्य के हित में शासन संचालन की बात कही थी। उन्हें भरोसा था कि सत्ताधीश उनकी बात सुनेंगे; किंतु उन्हें ही अपने जीवनकाल में यह आभास हो गया कि एक बार शासन के सुखों का उपभोग करने के बाद कोई भी व्यक्ति न तो प्रजा का भला सोचता है, न अपना आसन छोड़ता है। वह सभी प्रकार के छल-छद्म रचकर अपने वंश को सत्ता में बनाए रखने का पूरा प्रयत्न करता है। मेरे दादाजी ऋचीक ऋषि अपना पूरा जोर लगाकर भी सत्ताधारियों के दुर्गुणों को दूर नहीं कर सके। "  

" तो क्या तू अकेला इनसे लड़ता रहेगा ?" 

"माँ, मैं अकेला नहीं हूँ। मैं सत्ताधीशों को समझाने नहीं जाऊँगा। मैं जाऊँगा उन दलित-गलित लोगों के पास, जिन्हें प्राय: भेड़-बकरी समझा जाता है। मैं उस कुचले हुए वर्ग को अपने पैरों पर खड़ा करूँगा।" (अपराजेय- श्यामसुंदर भट्ट)



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सोमवार, 10 जनवरी 2022

विलियम शेक्सपीयर की सर्वश्रेष्ठ कहानियां- नरेश किंगर

 तीसरी आकृति बोली, “अन्य सभी हवायें मेरे शासन में हैं, मैं उन बन्दरगाहों एवं दिशाओं पर भी शासन करती हूं, जिनका पता नाविक दिक्सूचक (कम्पॉस) से पता लगाते हैं। मैं उसका सारा खून निचोड़ लूंगी और उसे घास के समान सुखा दूंगी। मैं उसकी आंखों से नींद छीन लूंगी, और वह एक अभिशप्त जीवन व्यतीत करेगा। वह धीरे-धीरे सूखता चला जाएगा। उसका जहाज डूबेगा तो नहीं, परन्तु वह भयंकर तूफानों से बरबाद हो जाएगा।" 

तभी उनके कानों में ढोल बजने की आवाज पड़ी। आवाज सुनते ही तीसरी आकृति कहने लगी, "मैं ढोल की आवाज सुन रही हूं। इससे साफ जाहिर है कि मैकबैथ युद्ध से विजयी होकर लौट रहा है। " (विलियम शेक्सपीयर की सर्वश्रेष्ठ कहानियां- नरेश किंगर)



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