नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 12 जनवरी 2023

भारतीय जनजातियाँ संरचना एवं विकास - डॉ. हरिश्चन्द्र उप्रेती

 अतीत में इनकी अर्थव्यवस्था संग्रहण एवं शिकार की अर्थव्यवस्था थी। इनका परंपरागत व्यवसाय लकड़ी के बर्तनों का निर्माण रहा है। जैसे "ठेकी" तथा "पाई" आदि का निर्माण। इसके अतिरिक्त ये लोग जंगली घास से सुन्दर रस्सियाँ बनाते हैं। पहले ये लोग इन वस्तुओं का विनिमय करते थे। स्वनिर्मित वस्तुओं को क्रय करने की इनकी व्यवस्था को “मूक विनिमय” (Silent Trade) की संज्ञा दी जा सकती है। 

चूँकि ये लोग स्वभाव से ही शर्मीली प्रकृति के थे तथा बाह्य लोगों के सम्पर्क से पृथक् रहते थे, अत: रात्रि के समय अपनी निर्मित वस्तुओं को निकटवर्ती हिन्दुओं के गाँवों में जाकर घर के दरवाजे के बाहर रख देते थे तथा यह अपेक्षा रहती थी कि इसके बदले दूसरे दिन उसी स्थान पर रात्रि को उन्हें खाद्य सामग्री उपलब्ध होगी। ग्रामवासी भी इस मूक विनिमय तथा राजी की मंशा से पूर्ण रूप से अवगत होते थे। 

डी.एन. मजूमदार ने इन्हें अज्ञात व्यापारी (Invisible Traders) की संज्ञा दी है। वस्तु विनिमय का यह स्वरूप अब समाप्त हो गया है। ये लोग अतीत में थोड़ी बहुत कृषि भी करते थे जिसका स्वरूप स्थान परिवर्ती था। अतीत में ये लोग वनों एवं कृषि योग्य भूमि की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते थे, परन्तु वर्तमान में वनों का पतन एवं वनों पर सरकारी नियंत्रण के फलस्वरूप स्थान परिवर्ती कृषि-व्यवस्था समाप्त हो गई है। (भारतीय जनजातियाँ संरचना एवं विकास - डॉ. हरिश्चन्द्र उप्रेती)



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शनिवार, 7 जनवरी 2023

बुरा मान जाते हैं

 

बुरा मान जाते हैं अक्सर वह मेरी बात का

जब भी उनकी कोई कमी बताता हूँ मैं उन्हें

                      कृष्णधर शर्मा 05.01.23