नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 7 अप्रैल 2024

रोज नए दुश्मन बनाता हूँ

दूसरों के दुःख देखकर मैं भी दुखी हो जाता हूँ

दूसरों को रोते देखकर अक्सर मैं भी रो देता हूँ

यूँ तो कमजोर नहीं मानता अपने को मगर 

अपनों से लड़ते वक्त कमजोर पड़ जाता हूँ

कोशिश तो करता हूँ कि न दुखाऊँ दिल किसी का

मगर अनुशासनहीनता नहीं सह पाता हूँ

कई लोग नाराज रहा करते हैं मुझसे

मगर नाराजगी कि वजह नहीं बताते हैं

अपनी कमियों को स्वीकार नहीं करते

सारा दोष मुझपर ही लगा जाते हैं 

समय का बड़ा पाबन्द हूँ मैं

औरों से भी यही चाहता हूँ

इसी चक्कर में अक्सर

रोज नए दुश्मन बनाता हूँ...

                कृष्णधर शर्मा 7.4.24 

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