नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 30 जून 2024

मैं खुश हूँ

 मैंने बच्चों को खुलकर हंसने से नहीं रोका

उन्हें खिलखिलाने से नहीं रोका

उन्हें गुनगुनाने से नहीं रोका

मैंने उन्हें सवाल पूछने से नहीं रोका

पढ़ाई पूरी कर लेने की बाद

खेलने जाने से नहीं रोका

कहाँ जा रहे हो! क्यों जा रहे हो!

मैंने उन्हें कभी-कभार ही टोका 

मैंने उन्हें किसी से बेवजह लड़ने से रोका

उन्हें किसी पर अन्याय करने से रोका

मगर उन्हें अन्याय सहने से भी रोका

उन्हें बहुत बड़ी-बड़ी खुशियां तो न दे पाया

मगर छोटी-छोटी खुशियों का गला भी नहीं घोंटा

नहीं लगाई पाबंदी खाने-पहनने पर

क्योंकि मुझे पता है कि खाने-पहनने का

सबसे अच्छा समय तो बचपन ही होता है

बच्चों को बहुत सा रुपया कमाने नहीं बोला

बहुत बड़ा आदमी बनने का दबाव नहीं डाला

हालांकि मुझसे जो बन पड़ा

वह सुविधाएं देने में भी पीछे नहीं हटा

मेरी इन गलतियों के लिए मुझे

शायद माफ न करे मेरा समाज

मगर मैं खुश हूँ कि मेरे बच्चे मुझसे खुश हैं

                        कृष्णधर शर्मा 30.6.24 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें