मैंने बच्चों को खुलकर हंसने से नहीं रोका
उन्हें
खिलखिलाने से नहीं रोका
उन्हें
गुनगुनाने से नहीं रोका
मैंने
उन्हें सवाल पूछने से नहीं रोका
पढ़ाई
पूरी कर लेने की बाद
खेलने
जाने से नहीं रोका
कहाँ
जा रहे हो! क्यों जा रहे हो!
मैंने
उन्हें कभी-कभार ही टोका
मैंने
उन्हें किसी से बेवजह लड़ने से रोका
उन्हें
किसी पर अन्याय करने से रोका
मगर
उन्हें अन्याय सहने से भी रोका
उन्हें
बहुत बड़ी-बड़ी खुशियां तो न दे पाया
मगर
छोटी-छोटी खुशियों का गला भी नहीं घोंटा
नहीं
लगाई पाबंदी खाने-पहनने पर
क्योंकि
मुझे पता है कि खाने-पहनने का
सबसे
अच्छा समय तो बचपन ही होता है
बच्चों
को बहुत सा रुपया कमाने नहीं बोला
बहुत
बड़ा आदमी बनने का दबाव नहीं डाला
हालांकि
मुझसे जो बन पड़ा
वह
सुविधाएं देने में भी पीछे नहीं हटा
मेरी
इन गलतियों के लिए मुझे
शायद
माफ न करे मेरा समाज
मगर
मैं खुश हूँ कि मेरे बच्चे मुझसे खुश हैं
#साहित्य_की_सोहबत #पढ़ेंगे_तो_सीखेंगे
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Samajkibaat समाज
की बात
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