सिद्धांत और वैचारिकता पर
लाखों कविताएं लिखकर
जब हम कवि बना चुके होंगे
एक नैतिक और बौद्धिक संसार
जहां पर नहीं होगा किसी भी तरह का
कोई भी गलत या अनैतिक काम
सब लोग रहेंगे अपनी मर्यादा में
जिओ और जीने दो के सिद्धांत
का विधिवत पालन करते हुए
आ चुका होगा जब रामराज्य
देश और दुनिया के हर कोने में
तब एक अजीब सी उदासी
छा चुकी होगी कवियों के जीवन में
कि अब क्या लिखें हम!
अब क्यों लिखें हम!
जबकि हमारे लिखने का
पूरा हो चुका है उद्देश्य
इसी चिंता और कशमकश में
पसीने से तरबतर उमस भरी रात में
बेचैनी से करवट बदलते हुए
अचानक गिर पड़ता है कवि
अपनी चारपाई से नीचे और
खुल जाती है अचानक से उसकी नींद
अचानक हुए इस घटनाक्रम से उबरकर
जब समझता है कवि
कि देख रहा होता है सपना
वह मानवता की भलाई के
तब वह लेता है छैन की सांस
कि चलो अभी तो बहुत सारी
कविताएं लिखना बाकी ही है न!
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