नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

लिखना बाकी है

सिद्धांत और वैचारिकता पर

लाखों कविताएं लिखकर

जब हम कवि बना चुके होंगे

एक नैतिक और बौद्धिक संसार

जहां पर नहीं होगा किसी भी तरह का

कोई भी गलत या अनैतिक काम

सब लोग रहेंगे अपनी मर्यादा में

जिओ और जीने दो के सिद्धांत

का विधिवत पालन करते हुए

आ चुका होगा जब रामराज्य

देश और दुनिया के हर कोने में

तब एक अजीब सी उदासी

छा चुकी होगी कवियों के जीवन में

कि अब क्या लिखें हम!

अब क्यों लिखें हम!

जबकि हमारे लिखने का

पूरा हो चुका है उद्देश्य

इसी चिंता और कशमकश में

पसीने से तरबतर उमस भरी रात में

बेचैनी से करवट बदलते हुए

अचानक गिर पड़ता है कवि

अपनी चारपाई से नीचे और

खुल जाती है अचानक से उसकी नींद

अचानक हुए इस घटनाक्रम से उबरकर

जब समझता है कवि

कि देख रहा होता है सपना

वह मानवता की भलाई के

तब वह लेता है छैन की सांस

कि चलो अभी तो बहुत सारी

कविताएं लिखना बाकी ही है न!

               कृष्णधर शर्मा 5.10.24

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