विस्तृत वैदिक साहित्य की बहुसंख्यक रचनाओं में जहाँ कहीं रामकथा के पात्रों के नाम मिलते हैं, उन सब स्थलों का उल्लेख और महत्त्वानुसार उनके प्रसंग का वर्णन प्रस्तुत अध्याय के पहले दो परिच्छेदों में किया गया है। सारी सामग्री का सिंहावलोकन करने पर वैदिक साहित्य और रामकथा के सम्बन्ध के विषय में हम किस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं, इसका इस अन्तिम परिच्छेद में निर्णय करना है।
ऋग्वेद में इक्ष्वाकु, दशरथ और राम, इन तीनों का एक-एक बार उल्लेख हुआ है। वे प्रभावशाली ऐतिहासिक राजा थे, इतना ही परिचय इन स्थलों से मिल सकता है। इनका पारस्परिक सम्बन्ध असम्भव नहीं है, लेकिन इसका कोई निर्देश नहीं मिलता। आगे चलकर इनका वैदिक साहित्य में और कहीं उल्लेख नहीं हुआ है। ऋग्वेद में सीता का भी एक बार उल्लेख हुआ है। लेकिन इस सीता का रामायण के उपर्युक्त अन्य ऐतिहासिक पात्रों से सम्बन्ध असम्भव ही है, क्योंकि उसका व्यक्तित्व ऐतिहासिक न होकर सीता अर्थात् लांगलपद्धति के मानवीकरण का परिणाम है। इस सीता का उल्लेख वैदिक काल के प्रारम्भ से लेकर अन्त तक बराबर होता रहा है।
ब्राह्मणों से राम मार्गवय, राम औपतस्विनी तथा राम क्रातुजातेय इन तीनों का परिचय मिलता है। इनके ऐतिहासिक होने में संदेह नहीं किया जा सकता है, लेकिन उनका रामायण के राम से कोई भी सम्बन्ध संभव प्रतीत नहीं होता।
ब्राह्मणों तथा प्राचीन उपनिषदों में अश्वपति और जनक का पहले पहल उल्लेख मिलता है। अश्वपति का रामायण के पात्रों से कोई सम्बन्ध निर्दिष्ट नहीं हुआ है। इतना ही प्रतीत होता है कि वे ऐतिहासिक राजा थे, जो सम्भवतः जनक के समकालीन थे। ब्राह्मणों के जनक और रामायणीय जनक की अभिन्नता की समस्या का निर्णय करना असम्भव प्रतीत होता है। इसका उल्लेख ऊपर हो चुका है। रामायण का रचयिता सीता के पिता जनक का प्रसिद्ध वैदिक जनक से सम्बन्ध जोड़ता है, यह स्पष्ट है और स्वाभाविक भी है। लेकिन इस अभिन्नता के लिए वैदिक साहित्य से कोई प्रमाण नहीं निकाला जा सकता। जनक के सारे वृत्तांत में रामकथा का कोई भी संकेत विद्यमान नहीं है।
इस तरह हम देखते हैं कि वैदिक रचनाओं में रामायण के एकाध पात्रों के नाम अवश्य मिलते हैं, लेकिन न तो इसके पारस्परिक सम्बन्ध की कोई सूचना दी गई है और न इनके विषय में रामायण की कथावस्तु का किंचित् भी निर्देश किया गया है। जनक और सीता का बार-बार उल्लेख होने पर भी दोनों का पिता-पुत्री-सम्बन्ध कहीं भी निर्दिष्ट नहीं हुआ है। अतः वैदिक काल में रामायण की रचना हुई थी अथवा रामकथा सम्बन्धी गाथाएँ प्रसिद्ध हो चुकी थीं, इसका निर्देश समस्त विस्तृत वैदिक साहित्य में कहीं भी नहीं पाया जाता। अनेक ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम रामायण के पात्रों के नामों से मिलते हैं; इससे इतना ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ये नाम प्राचीनकाल में भी प्रचलित थे। (रामकथा-फादर कामिल बुल्के)
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