टप-टप चू रहा है पानी
पुराने हो चुके छप्पर में
जगह-जगह हो चुके सुराखों से
दुबके हुए से बैठे हैं
कुछ बच्चे एक कोने में
उन टपकती हुई बूँदों से
अपने को बचाने का
असफल प्रयत्न करते हुए
साथ ही लगाये यह आशा
कि आता ही होगा बापू उनका
लेकर कुछ खाने के लिए.
[कृष्ण धर शर्मा] "1999"
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