देखा है ठिठुरते लोगों को
मैंने ठंडी रातों में
उनकी तो न जाने
कितनी रातें
कट जाती हैं फ़ाको में
भरपेट नहीं मिल पता तो
आधे पेट ही खा लेते हैं
सर्दी, गर्मी, बारिश में भी
किसी तरह वो जी लेते हैं
उसी को ही पहन लेते हैं
और वही ओढ़ कर सो जाते हैं
कोशिश तो करते हैं पर अपनी
गरीबी नहीं छुपा पाते हैं
अपना दुखड़ा फिर भी वह
खुद में समेटे रहते हैं
होता नहीं क्या दुःख उन्हें ?
जिनके बच्चे भूखे लेटे रहते हैं !
[कृष्ण धर शर्मा] "1999"
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