नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

नीरा राडिया,धीरज सिंह

सोमवार, २७ दिसम्बर २०१०

 

नीरा राडिया के सहयोगी रहे धीरज सिंह के खुलासे ने ईमानदारी का ढिंढोरा पीटने वाले कई भाजपा नेताओं को बेनकाब कर दिया है। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर यूपीए सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाली भाजपा के नेताओं ने राडिया के इशारे पर क्या-क्या किया, पर्दे के बाहर आ गया है। धीरज की मानें, तो राडिया का उत्थान 1998 में एनडीए का शासन आने के बाद ही हुआ।
एनडीए राज में नागरिक उड्डयन मंत्री अनंत कुमार और अन्य भाजपा नेताओं ने राडिया को कैसे फायदा पहुंचाया और कमाई गई रकम कैसे स्विस खातों में पहुंची, धीरज ने एक समाचार चैनल को विस्तार से बताया है। धीरज ने तो इतना तक बताया है कि भाजपा राज में किस तरह बेशकीमती जमीनें राडिया के ट्रस्ट को आवंटित की गई और भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ट्रस्ट के भवन का शिलान्यास तक किया।
क्या आडवाणी को पता नहीं था कि राडिया कौन हैं? खुलासे वाकई चौंकाने वाले हैं और इसका सार इतना-सा ही निकलता है कि जब जिसको मौका मिला, उसने अपनों को फायदा पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 23 दिन तक संसद को ठप करने वाली भाजपा और इसके नेता धीरज सिंह के रहस्योद्घाटन को भले ही आरोपों का पुलिन्दा बताएं, लेकिन इस बात से वे इनकार नहीं कर सकते कि दलाली के खेल में वे शामिल नहीं थे। धीरज सिंह अगर स्विस बैंकों के खातों का नंबर बताने का दावा भी कर रहे हैं, तो उनके आरोपों को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। देश आज उस दौर से गुजर रहा है, जब हर नेता-बड़ा अफसर सन्देह के घेरे में खड़ा है।

चिन्ता की बात तो ये है कि सत्ता में बैठे लोग देश को लूट भी रहे हैं और अपना दामन पाक-साफ बताते हुए सामने वाले को बेईमान बताने का घिनौना खेल खेलने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और कॉमनवेल्थ खेलों में हुए घोटालों को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक पर आंखें मूंदने के आरोप लगे हैं।

सवाल ये है कि क्या इन बड़े-बड़े घोटालों का राज देश की वह जनता जान पाएगी, जिसका पैसा लूटा गया है। या फिर हर बार की तरह इस बार भी आरोप-प्रत्यारोप और आयोग-कमेटियों की आड़ में सच दफन हो जाएगा। मनमोहन सिंह को चाहिए कि वह सर्वोच्च न्यायालय की भावना के अनुरूप पिछले सालों में हुए तमाम बड़े सौदों की बारीकी से जांच कराएं।
ये विचार किए बिना कि सौदे किस राज में हुए और उसमें कौन फंसेगा? मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं और जनता उनसे भ्रष्टाचार के मकड़जाल को तोड़ने की अपेक्षा करती है। घोटालों में चाहे कांग्रेस नेता फंसे या भाजपा, द्रमुक अथवा एनसीपी के, किसी को भी छोड़ा न जाए। मनमोहन सिंह को याद रखना चाहिए, 10 साल प्रधानमंत्री रहना कोई उपलब्धि नहीं होगी और न ही देश ऎसे लोगों को याद करता है। जनता उसे याद करती है, जो सिर्फ देश के भले के बारे में सोचे। मनमोहन सिंह के पास अच्छा मौका है, ये साबित करने के लिए कि जनता ने उन पर जो विश्वास किया है, उसकी रक्षा करने में वे समर्थ हैं। [साभार पत्रिका]

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