नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

मैं अबूझमाड़ हूं

मैं अबूझमाड़ हूं
मेरी अपनी ही एक दुनिया है
शांत और शाश्वत सौंदर्य से परिपूर्ण
बाहरी दुनिया के लिये 
 मैं अभी तक अबूझ ही था
क्योंकि मेरी रचना ही रचनाकार ने
कुछ ऐसी की है
कि सूर्य की ऊष्मा
या चंद्रमा की शीतलता भी
मेरे खपरैल तक ही आ पाती हैं
अभी तक अपनी इस शांत दुनिया
प्रवेश की अनुमति मैनें
किसी को नहीं दी है
सूर्य और चंद्रमा का धन्यवाद भी
कि उन्होंने कभी जबरदस्ती न करके
अपने सभ्य होने का ही प्रमाण ही दिया है
 मैं अभी तक अबूझ ही था
 मगर लगता है कि अब मुझे
 बूझ  लिया गया है
क्योंकि आजकल कभी-कभी
अनजान पदचापों की आहटें
सुनाई दे जाती हैं
और कभी-कभी
हवाई सर्वेक्षणों की गड़गड़ाहट भी!
जिससे मुझे लगता है
कि मुझे बूझ लिया गया है
लगता है उन्होंने बूझ लिया है
मेरे गर्भ में छिपी हुई
अमूल्य और अथाह संपदा को
और अब वह खोजेंगे कई बहाने
ताकि मुझमें छुपी हुई अमूल्य संपदा का
कर सकें दोहन पूरी सूझ-बूझ के साथ
जैसा कि मेरे भाई बस्तर के साथ हुआ है. (कृष्ण धर शर्मा,2011)

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