गांव की बेकारी से तंग आकर उसने पास के शहर में एक सेठजी के यहां ड्राइवर का काम पकड़ लिया. सेठजी ने उसे रहने के लिये एक कमरा भी दे दिया मगर वह ड्राइवर की सुविधा के लिये नहीं वह तो अपनी सुविधा के लिये था कि रात-दिन जब भी चाहें ड्राइवर उपलब्ध रहे.
एक दिन तड़के ही सेठजी ने ड्राइवर को जगाया और कहा कि पांच मिनट में जल्दी से तैयार हो जाओ एक जगह चलना है. वह अभी फ्रेश होकर निकला ही था कि सेठजी ने उसे फिर आवाज दी 'अरे जल्दी करो अभी तक तुम तैयार नहीं हुए, कितनी देर हो रही है'. यह सुनकर वह जल्दी से बिना ब्रश वगैरह किये ही निकल पड़ा. करीब एक घंटे के सफर के बाद वह लोग एक फार्महाउस पहुंचे जहां पर शहर के उदयोगपतियों की गुप्त मीटिंग रखी गई थी जो कि इन दिनों आयकर विभाग दवारा की जा रही लगातार छापामार कार्रवाई से परेशान थे. मीटिंग 4-5 घंटे चली, फार्महाउस के अंदर ही खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की गई थी मगर बाहर दूर-दूर तक खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी और ड्राइवरों को बाहर ही रहने की सख्त हिदायत दी गई थी, अत: वह भूखा-प्यासा ही रह गया. मीटिंग खत्म हुई और वह वापस घर पहुंचे जहां पर सेठानी जी अपनी बहू के साथ पहले से ही शापिंग करने जाने के लिये तैयार बैठी थीं. वह फिर उनको लेकर शापिंग माल पहुंचा, सेठानी जी अपनी बहू के साथ शापिंग करने चली गईं और वह बाहर ही गाड़ी के पास खड़ा हो गया, वहीं पर एक और ड्राइवर मिल गया. दूसरे ड्राइवर के दवारा हाल-चाल पूछे जाने पर उसने रूआंसा होकर बताया कि कैसे वह सुबह से भूखा-प्यासा है. दूसरा ड्राइवर हंसते हुए बोला 'अरे पगले अभी तू नया-नया है ना इसलिये परेशान हो जाता है तुझे भी धीरे-धीरे इस सबकी आदत पड़ जायेगी. वह हैरान होकर दूसरे ड्राइवर का मुंह देखने लगा कि यह कैसी फालतू बातें कर रहा है कि भला भूखे-प्यासे रहने की भी आदत हो सकती है क्या? ..(कृष्ण धर शर्मा,2005)
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