सब-इंस्पेक्टर शुक्ला को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि ६ महीने की सजा काटकर पिछले
महीने ही रिहा हुआ यह वही राकेश है जिसे एक व्यक्ति की पिटाई करने के आरोप में
पकड़ा गया था और ६ महीने कारावास की सजा सुनाई गई थी.
असल में हुआ यह था कि राकेश अपने दोस्तों के साथ शाम के समय चौराहे पर स्थित पानठेले पर बैठा हुआ था कि तभी कुछ बाहरी लड़के आये और पानठेले से सिगरेट लेकर वहीँ पर पीने लगे और सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाकर उड़ाने लगे तभी राकेश के एक दोस्त ने उन लड़कों को मना किया कि सिगरेट का धुंआ हमारे तरफ मत उड़ाओ मगर वह लड़के नहीं माने और बात बढ़ते-बढ़ते मारपीट तक की नौबत आ गई.
राकेश के दोस्त लोग ज्यादा संख्या में वहां पर थे अतः सिगरेट का धुंआ उड़ाने वाले २ लड़कों की राकेश के दोस्तों ने पिटाई कर दी बाद में पता चला कि वह किसी बड़े अधिकारी के लड़के थे. उन लड़कों ने पुलिस में शिकायत कर दी और पुलिस राकेश को भी उसके दोस्तों के साथ उठा कर थाने ले गई.
राकेश और उसके दोस्तों पर सरेआम गुंडागर्दी करने का आरोप लगा और न्यायालय से उन्हें ६ माह के कारावास की सजा सुनाई गई. राकेश तो शरीफ था मगर अपने दोस्तों के साथ वह भी फंस गया था.
६ महीने जेल में रहने के दौरान राकेश के अन्दर भी कई बुराइयाँ आ गई और वह भी अपराधी प्रवृत्ति का हो गया. जेल में अन्य कैदियों के साथ रहकर इन लोगों ने अपराध करने के नए-नए तरीके सीखे जिन्हें उन्होंने जेल से बाहर निकलने के बाद आजमाया भी.
जेल से निकलकर राकेश ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक व्यापारी के बेटे के अपहरण की योजना बनाई और मौका देखकर उसका अपहरण कर लिया और लाखों की फिरौती मांगी. राकेश और उसके दोस्त कोई पेशेवर मुजरिम तो थे नहीं अतः जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में आ गए.
सब-इंस्पेक्टर शुक्ला ने राकेश को जब हथकड़ी पहने हुए ठाणे में देखा और उसके अपराध के बारे में मालूम हुआ तो उसे स्यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वाही सीधा-साधा और शरीफ राकेश है जो निर्दोष होते हुए भी अपने दोस्तों के साथ जेल गया था.
“जेल” जिसे सुधारगृह माना जाता है वहां से यह शरीफ आदमी अपराधों की ट्रेनिंग लेकर निकला और अपराधी बन गया! फिर जेल की क्या उपयोगिता रह गई? जहाँ पर आकर लोग सुधरना तो दूर की बात उलटे बड़े अपराधी बनकर निकलते हैं!
सब-इंस्पेक्टर शुक्ला यह सब सोच ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर उसे कहा कि आपको साहब बुला रहे हैं और वह अनमने क़दमों से साहब के केबिन की तरफ बढ़ गया.......कृष्णधर शर्मा 8.2014
असल में हुआ यह था कि राकेश अपने दोस्तों के साथ शाम के समय चौराहे पर स्थित पानठेले पर बैठा हुआ था कि तभी कुछ बाहरी लड़के आये और पानठेले से सिगरेट लेकर वहीँ पर पीने लगे और सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाकर उड़ाने लगे तभी राकेश के एक दोस्त ने उन लड़कों को मना किया कि सिगरेट का धुंआ हमारे तरफ मत उड़ाओ मगर वह लड़के नहीं माने और बात बढ़ते-बढ़ते मारपीट तक की नौबत आ गई.
राकेश के दोस्त लोग ज्यादा संख्या में वहां पर थे अतः सिगरेट का धुंआ उड़ाने वाले २ लड़कों की राकेश के दोस्तों ने पिटाई कर दी बाद में पता चला कि वह किसी बड़े अधिकारी के लड़के थे. उन लड़कों ने पुलिस में शिकायत कर दी और पुलिस राकेश को भी उसके दोस्तों के साथ उठा कर थाने ले गई.
राकेश और उसके दोस्तों पर सरेआम गुंडागर्दी करने का आरोप लगा और न्यायालय से उन्हें ६ माह के कारावास की सजा सुनाई गई. राकेश तो शरीफ था मगर अपने दोस्तों के साथ वह भी फंस गया था.
६ महीने जेल में रहने के दौरान राकेश के अन्दर भी कई बुराइयाँ आ गई और वह भी अपराधी प्रवृत्ति का हो गया. जेल में अन्य कैदियों के साथ रहकर इन लोगों ने अपराध करने के नए-नए तरीके सीखे जिन्हें उन्होंने जेल से बाहर निकलने के बाद आजमाया भी.
जेल से निकलकर राकेश ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक व्यापारी के बेटे के अपहरण की योजना बनाई और मौका देखकर उसका अपहरण कर लिया और लाखों की फिरौती मांगी. राकेश और उसके दोस्त कोई पेशेवर मुजरिम तो थे नहीं अतः जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में आ गए.
सब-इंस्पेक्टर शुक्ला ने राकेश को जब हथकड़ी पहने हुए ठाणे में देखा और उसके अपराध के बारे में मालूम हुआ तो उसे स्यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वाही सीधा-साधा और शरीफ राकेश है जो निर्दोष होते हुए भी अपने दोस्तों के साथ जेल गया था.
“जेल” जिसे सुधारगृह माना जाता है वहां से यह शरीफ आदमी अपराधों की ट्रेनिंग लेकर निकला और अपराधी बन गया! फिर जेल की क्या उपयोगिता रह गई? जहाँ पर आकर लोग सुधरना तो दूर की बात उलटे बड़े अपराधी बनकर निकलते हैं!
सब-इंस्पेक्टर शुक्ला यह सब सोच ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर उसे कहा कि आपको साहब बुला रहे हैं और वह अनमने क़दमों से साहब के केबिन की तरफ बढ़ गया.......कृष्णधर शर्मा 8.2014
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