नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 18 अगस्त 2014

सुधारगृह

सब-इंस्पेक्टर शुक्ला को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि ६ महीने की सजा काटकर पिछले महीने ही रिहा हुआ यह वही राकेश है जिसे एक व्यक्ति की पिटाई करने के आरोप में पकड़ा गया था और ६ महीने कारावास की सजा सुनाई गई थी. 

असल में हुआ यह था कि राकेश अपने दोस्तों के साथ शाम के समय चौराहे पर स्थित पानठेले पर बैठा हुआ था कि तभी कुछ बाहरी लड़के आये और पानठेले से सिगरेट लेकर वहीँ पर पीने लगे और सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाकर उड़ाने लगे तभी राकेश के एक दोस्त ने उन लड़कों को मना किया कि सिगरेट का धुंआ हमारे तरफ मत उड़ाओ मगर वह लड़के नहीं माने और बात बढ़ते-बढ़ते मारपीट तक की नौबत आ गई.
राकेश के दोस्त लोग ज्यादा संख्या में वहां पर थे अतः सिगरेट का धुंआ उड़ाने वाले २ लड़कों की राकेश के दोस्तों ने पिटाई कर दी बाद में पता चला कि वह किसी बड़े अधिकारी के लड़के थे. उन लड़कों ने पुलिस में शिकायत कर दी और पुलिस राकेश को भी उसके दोस्तों के साथ उठा कर थाने ले गई.
राकेश और उसके दोस्तों पर सरेआम गुंडागर्दी करने का आरोप लगा और न्यायालय से उन्हें ६ माह के कारावास की सजा सुनाई गई. राकेश तो शरीफ था मगर अपने दोस्तों के साथ वह भी फंस गया था.
६ महीने जेल में रहने के दौरान राकेश के अन्दर भी कई बुराइयाँ आ गई और वह भी अपराधी प्रवृत्ति का हो गया. जेल में अन्य कैदियों के साथ रहकर इन लोगों ने अपराध करने के नए-नए तरीके सीखे जिन्हें उन्होंने जेल से बाहर निकलने के बाद आजमाया भी.
जेल से निकलकर राकेश ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक व्यापारी के बेटे के अपहरण की योजना बनाई और मौका देखकर उसका अपहरण कर लिया और लाखों की फिरौती मांगी. राकेश और उसके दोस्त कोई पेशेवर मुजरिम तो थे नहीं अतः जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में आ गए.
सब-इंस्पेक्टर शुक्ला ने राकेश को जब हथकड़ी पहने हुए ठाणे में देखा और उसके अपराध के बारे में मालूम हुआ तो उसे स्यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वाही सीधा-साधा और शरीफ राकेश है जो निर्दोष होते हुए भी अपने दोस्तों के साथ जेल गया था.
“जेल” जिसे सुधारगृह माना जाता है वहां से यह शरीफ आदमी अपराधों की ट्रेनिंग लेकर निकला और अपराधी बन गया! फिर जेल की क्या उपयोगिता रह गई? जहाँ पर आकर लोग सुधरना तो दूर की बात उलटे बड़े अपराधी बनकर निकलते हैं!
सब-इंस्पेक्टर शुक्ला यह सब सोच ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर उसे कहा कि आपको साहब बुला रहे हैं और वह अनमने क़दमों से साहब के केबिन की तरफ बढ़ गया.......कृष्णधर शर्मा 8.2014

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