नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

अग्निपरीक्षा


स्त्री तुमको ही हर युग में
क्यों देनी होती अग्निपरीक्षा
स्त्री तो होती है देवी
सदियों से मिली हमें यह शिक्षा
सीता, द्रोपदी या अहिल्या हो
छला तुम्हें पुरुषों ने सदा
तुमको ही दोषी ठहराया
पुरुष सदा निर्दोष रहा
कथनी-करनी में फर्क मगर
समझ नहीं आता हमको
गलती हो पुरुषों की अगर  
सजा मिली हरदम तुमको

              (कृष्ण धर शर्मा, ७.२०१६)

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