रुसी साहित्य को पढ़ते समय (या पढ़कर) मन में शून्यता, खिन्नता या निस्सारता सी क्यों महसूस होती है! (व्यग्रता तो बिलकुल नहीं)
अधिकतर रुसी साहित्य दुखांत में ख़त्म होता है और उसमें नास्तिकता या बेवज़ह के किस्से ज्यादा भरे पड़े होते हैं!
शायद मैं गलत भी हो सकता हूँ!
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