"अब उनसे टेक लगाकर भी न बैठा गया। वे पास ही रखे हुए हुक्के की नगाली मुंह में लगाकर लेट गये और बड़े ही भक्ति-भाव से आंख मूंदकर भगवान् को याद करने लगे- "हे देवाधिदेव ! इस कलकत्ता महान् नगरी में जाने कितने लोग गाड़ी और मोटर की चपेट में आकर मरते हैं, वे क्या तुम्हारे सम्मुख मुझसे भी बढ़कर पतित हैं। हे पतित पावन! अगर तुम्हारी मुझपर दया हो जाये, तो एक भारी-सी मिलिटरी लॉरी मेरी छाती पर से होकर चली जाये। बस यही वरदान तुम मुझे दो।" परिणीता (शरतचंद्र)
नमस्कार,आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757
बुधवार, 28 मार्च 2018
रविवार, 25 मार्च 2018
भूख" -अमृतलाल नागर
"बाप का दिल फिर डगमगाने लगा। पुजारी ने अपने को साधा। घड़े पर ढके हुए मिट्टी के सकोरे में कनेर का काढ़ा भरकर, अपनी गोद में बैठे हुए बच्चे को उसने अपने हाथ से ज़हर पिलाना शुरू किया। बच्चा बड़े संतोष से ज़हर पी रहा था। बाप की आँखों में आंसू छलछला आए। पेट भर चारों बच्चों ने ज़हर पिया। काढ़ा खत्म होने लगा। वह खुद अपने लिए भी तो चाहता था। उसका अपना भी स्वार्थ तो था। उसने जबरदस्ती बच्चों को पीने से रोक दिया। इतने में छोटा बच्चा पेट पकड़कर रोने लगा। ज़हर धीरे-धीरे सब बच्चों पर असर कर रहा था। बाप चुपचाप देखता रहा। बेटे उसकी आंखों के आगे मर रहे थे। वे सदा के लिए सो गए। पुजारी भी सदा के लिए सो जाना चाहता था। पुजारी ने घड़े का मुंह तोड़ा, जिससे पीने में आसानी हो। टूटा घड़ा हाथ में उठ आया। भगवान के चरणों में प्रणाम कर पीना ही चाहता था कि गाय का बछड़ा कांपती हुई आवाज में रंभा उठा।" "भूख" (अमृतलाल नागर)
गुरुवार, 1 मार्च 2018
लेन-देन - शरतचन्द्र
"प्रसंगपरक यही है कि चंडी गांव का अधिक भाग इस समय चंडी के हाथ से निकल गया है। शायद देवता का इससे कुछ आता-जाता नहीं, किंतु देवता के जो सेवक या पुजारी हैं, उनका क्रोध आज भी शांत नहीं हुआ है। अब भी झगड़े-बखेड़े होते रहते हैं, जो बीच-बीच में भयानक रूप धारण कर लेते हैं।" (लेन-देन शरतचन्द्र)