"अब उनसे टेक लगाकर भी न बैठा गया। वे पास ही रखे हुए हुक्के की नगाली मुंह में लगाकर लेट गये और बड़े ही भक्ति-भाव से आंख मूंदकर भगवान् को याद करने लगे- "हे देवाधिदेव ! इस कलकत्ता महान् नगरी में जाने कितने लोग गाड़ी और मोटर की चपेट में आकर मरते हैं, वे क्या तुम्हारे सम्मुख मुझसे भी बढ़कर पतित हैं। हे पतित पावन! अगर तुम्हारी मुझपर दया हो जाये, तो एक भारी-सी मिलिटरी लॉरी मेरी छाती पर से होकर चली जाये। बस यही वरदान तुम मुझे दो।" परिणीता (शरतचंद्र)
नमस्कार,आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757
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