नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 16 जून 2018

शरतचन्द्र की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ-शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय

 "कोलकाता मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगा, इतनी दहशत में भला कोई चीज अच्छी लग सकती है? आगे कभी लगेगी, इसका भी भरोसा नहीं कर सका। कहां गया हमारा वह नदी का किनारा, बांसों के झुरमुट, बेल की झाड़ी, मित्र-परिवार के बगीचे के कोने का वह अमरुद का पेड़, कुछ भी तो नहीं है ! यहां तो सिर्फ बड़े-बड़े ऊंचे मकान, गाड़ी-घोड़े, आदमियों का भीड़-भड़क्का, लंबी-चौड़ी सड़कें ही दिखाई देती हैं। मकान के पीछे ऐसा एक बाग़-बगीचा भी तो नहीं, जहां छिपकर एक चिलम तंबाकू पी सकूं।" (शरतचन्द्र की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ-शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय)



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