नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 21 जून 2018

डॉ. बलराम अग्रवाल, सम्पादक-मधुदीप

 "समकालीन लघुकथा : सामान्य अनुशासन" ’लघुकथा’ शब्द बोलते ही जो पहली प्रतिक्रिया लोगों से आमतौर पर सुनने को मिल जाती है, वह लगभग यह होती है कि ’लघुकथा-लेखक’ माने कथ्य, भाषा, शिल्प और शैली सभी के स्तर पर  लगभग अधकचरी रचना देनेवाला लेखक।  इस स्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि लघुकथा से जुड़नेवाले नए लेखक कुछ विशेष अनुशासनों और तत्सम्बन्धी कथा-धैर्य से परिचित हों और सावधानियाँ बरतें। लघुकथा के कुछ महत्वपूर्ण अनुशासन:- 

1. कथा-धैर्य 

2. लघुकथा और सामान्य-जन 

3. क्लिष्ट बिम्ब-प्रतीक-संकेत-योजना 

4. नेपथ्य  

5. लाघव 

6. यथार्थ घटना और कथा-घटना 

7. कल्पना की उड़ान 

8. कथा-भाषा, परिवेश

 9. शिल्प और शैली 

10. वाक्य संयोजन एवं शब्द-प्रयोग 

11. दृश्य-संयोजन एवं संवाद-योजना 

12. शीर्षक 

13. लेखकविहीनता 

14. सम्पूर्णता (पड़ाव और पड़ताल-डॉ. बलराम अग्रवाल, सम्पादक-मधुदीप)




#साहित्य_की_सोहबत

#पढ़ेंगे_तो_सीखेंगे

#हिंदीसाहित्य

#साहित्य

#कृष्णधरशर्मा



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें