"भोजन, निद्रा और विनोद, ये ही मनुष्य जीवन के तीन तत्व हैं। इसके सिवा सब गोरख धंधा है। मैं धर्म को बृद्धि से बिलकुल अलग समझता हूं। धर्म को तोलने के लिए बुद्धि उतनी ही अनुपयुक्त है, जितना बैंगन तोलने के लिए सुनार का कांटा। धर्म धर्म है, बुद्धि बुद्धि। या तो धर्म का प्रकाश इतना तेजोमय है कि बुद्धि की आंखें चौंधिया जाती हैं या इतना घोर अंधकार है कि बुद्धि को कुछ नजर ही नहीं आता।" (रंगभूमि-मुंशी प्रेमचन्द)
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