नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 9 जुलाई 2018

रंगभूमि-मुंशी प्रेमचन्द

 "भोजन, निद्रा और विनोद, ये ही मनुष्य जीवन के तीन तत्व हैं। इसके सिवा सब गोरख धंधा है। मैं धर्म को बृद्धि से बिलकुल अलग समझता हूं। धर्म को तोलने के लिए बुद्धि उतनी ही अनुपयुक्त है, जितना बैंगन तोलने के लिए सुनार का कांटा। धर्म धर्म है, बुद्धि बुद्धि। या तो धर्म का प्रकाश इतना तेजोमय है कि बुद्धि की आंखें चौंधिया जाती हैं या इतना घोर अंधकार है कि बुद्धि को कुछ नजर ही नहीं आता।" (रंगभूमि-मुंशी प्रेमचन्द)



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