नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

महाराजा-दीवान जरमनी दास

 "महाराजा रात को काफ़ी देर से सोते थे। उनका क़ायदा था कि अगले दिन शाम को उनकी नींद टूटने का जब वक़्त हो, तब उनकी अंग्रेज महारानी डोरोथी और महल की रानियां हल्के-हल्के उनके पैर दबाएं और धीमी मगर सुरीली आवाज़ में गीत गाती रहें। जागने पर महाराजा को 'बेड टी' पेश की जाए। महाराजा कुछ वहमी आदत के थे। रात को, रोज़ उनका हुक्म जारी होता था कि आंखें खुलने पर सबसे पहले महल की फलां-फलां रानियां उनकी नजरों के सामने पड़ें। उनका यकीन था कि अगले 24 घंटे राजी-खुशी गुजारने के लिए यह इंतजाम जरूरी है।" (महाराजा-दीवान जरमनी दास)



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