नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

हाँ मगर!


तुम्हारी भेड़ियों जैसी भूखी नजरें
तुम्हारी गलीज और कामुक भावनाएं
तुम्हारी अश्लील और गंदी टिप्पणियां
जो, राह चलती किसी की
बहन या बेटी को देखकर
उपजते हैं तुम्हारे भीतर
तुम सोचकर भी देखोगे यही सब
अपनी बहन या बेटी के बारे में कभी
सिहर जाओगे तुम, गड जाओगे जमीन में
कहीं गहरे तक शर्म के मारे
तुम्हें लगेगा कि धरती फट जाये अभी
और समा जाओ तुम उसमें सबसे मुंह छुपाकर
हाँ मगर! तुम इंसान होगे तभी न!
अन्यथा शैतानों का तो यह रोज का काम है....
               (कृष्ण धर शर्मा, 12.04.2018)

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