नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

तालाब याद आये


हमने तालाबों को
पाट-पाटकर
बड़े-बड़े आलीशान
घर बनाये
घरों में सुख-सुविधा के
तमाम उपकरण लगाये
मगर जब नहीं मिला
पानी गुजर-बसर के लिए
तब हमें वही
पाटे हुए तालाब
बहुत-बहुत याद आये
   (कृष्ण धर शर्मा, 16.05.2018)

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