नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

मुसाहिबजू-रामगढ़ की रानी-वृंदावनलाल वर्मा

 "तीन-चार दिन के भीतर ही मुसाहिबजू  की गढ़ी के आस-पास सैनिकों के झुंड के झुंड एकत्र होने लगे। सबके पास बंदूक और ढाल-तलवार। मूँगिये कपड़े पहने और बुंदेलखंडी झब्बू जूते। न कोई नियम, न कोई संयम। कवायद -परेड बहुत थोड़े सिपाहियों को सिखाई गई थी; पर इनकी नकल अन्य सिपाही उत्साह और ध्यान के साथ कर रहे थे, जो हवलदार के परिश्रम की कमी की पूर्ति कर रही थी।" (मुसाहिबजू-रामगढ़ की रानी-वृंदावनलाल वर्मा)




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