नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

आँगन में एक वृक्ष- दुष्यन्त कुमार

 "मुंशीजी ने कभी किसी से कड़वी बात नहीं कही, कभी किसी पर गुस्सा नहीं किया और कभी किसी को नाराज नहीं किया। हालाँकि कई  बार मुंशीजी ने पिताजी के लिए काश्तकारों की जमीनें हड़पी, उन्हें बेदखल कराया या किसी पर सौ के बदले हजार रुपये की नालिश ठोक दी, मगर मीठे वे फिर भी बने रहे। अनेक ऐसे मौके भी आये जब मुंशीजी को उन लोगों की गालियाँ, धमकियाँ और जूते तक बरदाश्त करने पड़े। एक बार तो अपने भिक्खन चमार ने ही उन्हें स्टेशन से आते हुए, रास्ते में, मुंगड़पुर गाँव के ठीक बीचोंबीच पकड़कर दस जूते मारे थे" (आँगन में एक वृक्ष- दुष्यन्त कुमार)



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