"मुंशीजी ने कभी किसी से कड़वी बात नहीं कही, कभी किसी पर गुस्सा नहीं किया और कभी किसी को नाराज नहीं किया। हालाँकि कई बार मुंशीजी ने पिताजी के लिए काश्तकारों की जमीनें हड़पी, उन्हें बेदखल कराया या किसी पर सौ के बदले हजार रुपये की नालिश ठोक दी, मगर मीठे वे फिर भी बने रहे। अनेक ऐसे मौके भी आये जब मुंशीजी को उन लोगों की गालियाँ, धमकियाँ और जूते तक बरदाश्त करने पड़े। एक बार तो अपने भिक्खन चमार ने ही उन्हें स्टेशन से आते हुए, रास्ते में, मुंगड़पुर गाँव के ठीक बीचोंबीच पकड़कर दस जूते मारे थे" (आँगन में एक वृक्ष- दुष्यन्त कुमार)
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