नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

स्वेटर, कहानी संग्रह-अशोक जमनानी

 पिछले कुछ महीनों के सारे दुःख उसे अचानक याद आ गए। हर एक दुःख का सामना करते वक्त एक भरोसा उसके साथ रहा कि कभी न कभी ये समय बीत जायेगा और वो फिर से अपनी पुरानी ज़िन्दगी पा लेगा। लेकिन आज न जाने क्यों उसके अपने  पाँव ही उसका साथ नहीं दे रहे थे। मज़दूरी करते वक्त छह दिन वो इसी उम्मीद में काटता था कि शनिवार की रात से सोमवार सुबह तक वो अपने घर में अपनी मर्ज़ी का मालिक रहेगा। यह एक उम्मीद ही उसके भीतर दूसरी हर एक उम्मीद को जन्म देती थी। (स्वेटर, कहानी संग्रह-अशोक जमनानी)



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