"किसे पूजते तिमिर में खड़े अरे, मन में गोपन हो कहीं खोलकर नयन जरा देखो देवता घर में हैं या नहीं" "नहीं मुझको किंचित स्वीकार अशुचि से पूरित जो उपहार मिले प्रभु तेरा प्रेमोपहार गूँजती जिसमें तव झंकार मात्र यह मुझको है स्वीकार" (गीतांजलि- रवीन्द्रनाथ ठाकुर हिन्दी काव्य रूपान्तर-डॉ.हरिवंश तरुण)
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