नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 31 मार्च 2019

स्वीपर और संभ्रांत


कालोनी में गली क्रिकेट चल रहा था जिसमें अधिकतर बच्चे मध्यम संभ्रांत वर्ग के थे, जो कालोनी के ही छोटे से खेल मैदान को कालोनी के ही कुछ दबंगों द्वारा हड़पकर मैदान की जगह में एक एक मंदिर, कालोनी का ऑफिस और एक बड़ा मीटिंग हाल कम गेट-टुगेदर रूम बनाकर खेल मैदान का अस्तित्व मिटा चुके थे.
अब खेल मैदान के अभाव में बच्चे कालोनी की गली में ही क्रिकेट खेलकर किसी तरह अपना शौक पूरा कर रहे थे. मगर वहां भी समस्याओं की कमी न थी. कभी गेंद किसी की खिड़की का कांच तोड़कर घर में घुस जाती जो फिर शायद ही वापस आ पाती या फिर अधिकतर गेंदें कालोनी की अर्द्धविकसित खुली नाली में गिर जाती जिसे निकालने में वह मध्यम संभ्रात वर्गीय  बच्चे असहज महसूस करते. इस तरह से एक दिन में कई गेंदे बेकार हो जातीं.
एक दिन इन्हीं बच्चों के खेल के दौरान कालोनी का स्वीपर उधर से गुजर रहा था कि अचानक एक गेंद नाली में जा गिरी जिसे स्वीपर ने तुरन्त उठाया और अपने कपड़ों से पोंछते हुए गेंद बच्चों की तरफ उछाल दी. मगर वह बच्चे पीछे की तरफ हटते हुए स्वीपर को ही बुरा-भला कहने लगे कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई नाली में गिरी हुई गेंद हमारी तरफ फेंकने की! हम लोग नाली में गिरी हुई गेंद से दुबारा कैसे खेल सकते हैं!.
स्वीपर ने हँसते हुए कहा “अरे बाबू साहब! हमारे मोहल्ले के बच्चे तो ऐसे ही खेलते हैं. इसमें कौन सी बड़ी बात है.”
इस पर कालोनी के सारे बच्चे एक-दुसरे का मुंह ताकने लगे. तब तक स्वीपर वहां से निकल गया. अब सभी बच्चों में फिर बहस छिड़ी कि “स्वीपरों के बच्चे जरूर नाली में गिरी हुई गेंद को फिर से निकालकर उससे दुबारा खेल सकते हैं मगर हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हम बड़े घरों के बच्चे हैं”
इस पर एक बच्चे ने कहा “अरे इसमें कोई इतनी बड़ी बुराई की बात नहीं है. गेंद को नाली से निकालकर फिर उसे नल के पानी से धोकर दुबारा खेला जा सकता है. हाँ मगर गेंद को नाली से निकालकर उसे धोएगा कौन!”
इस बात पर सभी बच्चों की नजरें वापस जाते हुए स्वीपर पर जा टिकीं.
   (कृष्ण धर शर्मा 31.3.2019)
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