नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 3 अप्रैल 2019

मदरसा-मंजूर एहतेशाम

 "दुनिया में अव्वल तो आदर्श-नामी तोता पालता कौन है, या अगर पालता है, तो उसकी परवरिश गिद्ध की तरह करता है-दूसरों को नोचने-ख़सूटने के वास्ते इस्तेमाल करने को! 

जिन्दा चीज़ें अपनी उम्र गुज़ार सकने के लिए आब, हवा और गिजा की मोहताज होती हैं, वह तोते हों, गिद्ध या इनसान। कभी कोई बेईमानी करने से पहले दिल में यह नीयत थोड़ी करता है कि मैं फलाँ-फलाँ काम बेईमानी करने जा रहा हूँ।  बेईमानी भी हो जाती है, ईमानदारी की तरह! जो हो जाए, उसके पक्ष में दलीलें पेश करना कौन सा मुश्किल काम है! लगता है, हमारे जमाने में ऐसा हो गया, लेकिन शायद दुनिया बनने के साथ ही ऐसा रहा होगा।

 सवाल-जवाब का जोखिम भी, किसी के साथ, इस तकल्लुफ़ को बरतते हुए ही उठाया जा सकता है कि कहीं हम किसी लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन तो नहीं कर रहे। फिर भी, दुनियादारी के सारे तक़ाज़े ज़ेहन में रखने की कोशिश के बावजूद, कभी-कभी ऐसा हो ही जाता है! (जैसा करने की मन में बेहद इच्छा के बावजूद, हम नहीं करना चाहते।)" (मदरसा-मंजूर एहतेशाम)




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