"दुनिया में अव्वल तो आदर्श-नामी तोता पालता कौन है, या अगर पालता है, तो उसकी परवरिश गिद्ध की तरह करता है-दूसरों को नोचने-ख़सूटने के वास्ते इस्तेमाल करने को!
जिन्दा चीज़ें अपनी उम्र गुज़ार सकने के लिए आब, हवा और गिजा की मोहताज होती हैं, वह तोते हों, गिद्ध या इनसान। कभी कोई बेईमानी करने से पहले दिल में यह नीयत थोड़ी करता है कि मैं फलाँ-फलाँ काम बेईमानी करने जा रहा हूँ। बेईमानी भी हो जाती है, ईमानदारी की तरह! जो हो जाए, उसके पक्ष में दलीलें पेश करना कौन सा मुश्किल काम है! लगता है, हमारे जमाने में ऐसा हो गया, लेकिन शायद दुनिया बनने के साथ ही ऐसा रहा होगा।
सवाल-जवाब का जोखिम भी, किसी के साथ, इस तकल्लुफ़ को बरतते हुए ही उठाया जा सकता है कि कहीं हम किसी लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन तो नहीं कर रहे। फिर भी, दुनियादारी के सारे तक़ाज़े ज़ेहन में रखने की कोशिश के बावजूद, कभी-कभी ऐसा हो ही जाता है! (जैसा करने की मन में बेहद इच्छा के बावजूद, हम नहीं करना चाहते।)" (मदरसा-मंजूर एहतेशाम)
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