नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 15 मई 2019

माँ के लिए- हेमधर शर्मा

 "पर एक बात कहूँ माँ! 

तुम्हारा सहयोग अगर मिले न, 

तो जी मैं अब भी सकता हूँ। 

बस एक बार तुम मेरी दुश्चिंता छोड़ दो 

और फिर देखो कि मैं क्या नहीं कर सकता हूँ 

तुम मेरे घर में स्वर्ग देखना चाहती हो माँ 

पर मैं तो सारी दुनिया को स्वर्ग बना देना चाहता हूँ 

आखिर तुम्हारी करुणा ने ही तो मेरे अंदर 

विस्तार पाया है"

 (माँ के लिए- हेमधर शर्मा)




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मंगलवार, 7 मई 2019

मेजर संजय चतुर्वेदी -51 किताबें ग़ज़लों की- नीरज गोस्वामी

"घर के चौकीदार हुए दादा-दादी 

सब के पहरेदार हुए दादा-दादी 

कौन ख़रीदे नहीं रहे पढ़ने वाले 

उर्दू के अख़बार हुए दादा-दादी 

घर में उनका नहीं रहा हिस्सा कोई 

कपड़ों वाला तार हुए दादा-दादी"

मेजर संजय चतुर्वेदी  (51 किताबें ग़ज़लों की- नीरज गोस्वामी) 



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शनिवार, 4 मई 2019

डाली मोगरे की- नीरज गोस्वामी

"तीर खंज़र की न अब तलवार की बातें करें 

ज़िन्दगी में आइये बस प्यार की बातें करें 

टूटते रिश्तों के कारण जो बिखरता जा रहा 

अब बचाने को उसी घर बार की बातें करें 

थक चुके हैं हम बढ़ाकर यार दिल की दूरियाँ 

छोड़कर तक़रार अब मनुहार की बातें करें 

काश 'नीरज' हो हमारा भी ज़िगर इतना बड़ा 

जेब ख़ाली हो मगर सत्कार की बातें करें 

(डाली मोगरे की- नीरज गोस्वामी)




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