"घर के चौकीदार हुए दादा-दादी
सब के पहरेदार हुए दादा-दादी
कौन ख़रीदे नहीं रहे पढ़ने वाले
उर्दू के अख़बार हुए दादा-दादी
घर में उनका नहीं रहा हिस्सा कोई
कपड़ों वाला तार हुए दादा-दादी"
मेजर संजय चतुर्वेदी (51 किताबें ग़ज़लों की- नीरज गोस्वामी)
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Samajkibaat समाज
की बात
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