नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 24 जुलाई 2019

अंतिम छोर का आदमी


बनानेवाला कोई भी रहा हो
मगर हर सूची में रहा उसका नाम
हमेशा से ही अंतिम छोर पर
जहाँ तक पहुँचते-पहुँचते
ख़त्म हो जाती थीं तमाम वस्तुएं
योजनायें और उनका बजट
उसके नाम पर चाहे चलते रहे
सैकड़ों, हजारों एनजीओ या संस्थाएं
जिन्हें मिलते रहे अनुदान और  
सहायता राशियां लाखों, करोड़ों में
मगर पहुँच नहीं पाया उसका हिस्सा
उस तक ही, तमाम कोशिशों के बाद भी...
         (कृष्ण धर शर्मा, 10.01.2019)

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