बनानेवाला
कोई भी रहा हो
मगर
हर सूची में रहा उसका नाम
हमेशा
से ही अंतिम छोर पर
जहाँ
तक पहुँचते-पहुँचते
ख़त्म
हो जाती थीं तमाम वस्तुएं
योजनायें
और उनका बजट
उसके
नाम पर चाहे चलते रहे
सैकड़ों,
हजारों एनजीओ या संस्थाएं
जिन्हें
मिलते रहे अनुदान और
सहायता
राशियां लाखों, करोड़ों में
मगर
पहुँच नहीं पाया उसका हिस्सा
उस
तक ही, तमाम कोशिशों के बाद भी...
(कृष्ण धर शर्मा, 10.01.2019)
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