नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 17 अगस्त 2019

मेरा बेटा- विष्णु प्रभाकर

 "हसन, मैं उससे पूछूँगा, मैं मुसलमान हो गया तो क्या हुआ, हमारा बाप-बेटे का नाता तो नहीं टूट सकता, आखिर उसकी रगों में अब भी मेरा खून बहता है, इतना ही जितना कि अनवर की रगों में बहता है, शायद ज्यादा..." ("हसन, मैं उससे पूछूँगा, मैं मुसलमान हो गया तो क्या हुआ, हमारा बाप-बेटे का नाता तो नहीं टूट सकता, आखिर उसकी रगों में अब भी मेरा खून बहता है, इतना ही जितना कि अनवर की रगों में बहता है, शायद ज्यादा..." (मेरा बेटा- विष्णु प्रभाकर)



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