"हसन, मैं उससे पूछूँगा, मैं मुसलमान हो गया तो क्या हुआ, हमारा बाप-बेटे का नाता तो नहीं टूट सकता, आखिर उसकी रगों में अब भी मेरा खून बहता है, इतना ही जितना कि अनवर की रगों में बहता है, शायद ज्यादा..." ("हसन, मैं उससे पूछूँगा, मैं मुसलमान हो गया तो क्या हुआ, हमारा बाप-बेटे का नाता तो नहीं टूट सकता, आखिर उसकी रगों में अब भी मेरा खून बहता है, इतना ही जितना कि अनवर की रगों में बहता है, शायद ज्यादा..." (मेरा बेटा- विष्णु प्रभाकर)
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