नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 9 जुलाई 2019

कैरली का कहानी साहित्य-मलयालम की प्रतिनिधि कहानियाँ- एन. पी. कुट्टन पिल्लै

 "वास्तविक अर्थ में कहानी कहने लायक मलयालम की पहली रचना संभवतः सन 1894 में रचित हुई, जिसके लेखक मुरकोत्तू कुमारन (1874-1941) थे। वे  एक लब्धप्रतिष्ठ लेखक थे जिन्होंने साहित्य की अन्य विधाओं के जैसे कहानी क्षेत्र में भी प्रशंसनीय कार्य किया।  

मलयालम कहानी साहित्य के इस उषा-काल के अन्य सशक्त हस्ताक्षर थे वेंगयिल कुंजिरामन नायनार, ओटूविल कुंजुकृष्ण मेनोन, अम्पाटी नारायण पुतुवाल, ई. वी. कृष्णपिल्लै, मलबार सुकुमारन आदि। 

 प्रारम्भ कालीन कहानियाँ घटना-प्रधान, वर्णनात्मक एवं चमत्कारपूर्ण थीं। दंतकथाओं, लोककथाओं, वीरकृत्यों, सामाजिक प्रथाओं पर आधारित वे कहानियाँ भले ही हमें रसमग्न करें, फिर भी उनमें शिल्प-सौन्दर्य का एक प्रकार से अभाव रहा। वे मनोरंजक मात्र थीं, यथार्थ जीवन से विमुख थीं। कल्पनाश्रित थीं।

अतः वास्तविक अर्थ में आधुनिक कहानी की संज्ञा प्राप्त करने योग्य कहानियों का श्रीगणेश लगभग सन 1930 के आसपास हुआ। (कैरली का कहानी साहित्य-मलयालम की प्रतिनिधि कहानियाँ- एन. पी. कुट्टन पिल्लै)




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