नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 27 नवंबर 2019

5 पॉइंट समवन- चेतन भगत

 "आप सभी को यहाँ रहने और पढ़ने के लिए शुभकामनाएँ। बेस्ट ऑफ लक। याद रखो, जैसे कि तुम्हारे विभाग प्रमुख प्रो.चेरियन कहते हैं कि कठिन वर्कलोड डिजाइन आपसे सदैव मेहनत करवाने के लिए है। और हाँ, ग्रेडिंग सिस्टम की कद्र करें।

 अगर आपको खराब ग्रेड्स मिले, तो याद रखें कि आपको न तो कोई नौकरी मिलेगी और न ही आपका कोई भविष्य होगा। लेकिन अगर आप अच्छा करते हैं तो यह दुनिया आपके कदम चूमेगी। इसलिए खराब प्रदर्शन की कोई गुंजाइश नहीं है।" 

जैसे ही प्रो. दुबे ने अपने आखिरी शब्द कहे, हम सभी के अंदर एक सनसनी सी दौड़ गई। प्रोफेसर ने डस्टर मेज पर जोर से पटका और चॉक के बादलों को पीछे छोड़ते हुए कक्षा से बाहर चले गए। (5 पॉइंट समवन- चेतन भगत)



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गुरुवार, 14 नवंबर 2019

हारने के लिए

 उन्होंने जीतना ही कब चाहा था मुझे

मैं तो ज़माने से बैठा था हारने के लिए....

                       कृष्णधर शर्मा 12.11.19

बुधवार, 13 नवंबर 2019

इसमें मेरी क्या खता

 वक्त का तकाज़ा है, तू ही बता इसमें मेरी क्या खता

साजिशों के दौर में, तेरी मोहब्बत भी साजिश लगे है मुझे

                       कृष्णधर शर्मा 12.11.19

रविवार, 10 नवंबर 2019

कविता के नये प्रतिमान- नामवर सिंह

 'कविता के नए प्रतिमानों की चर्चा के प्रसंग में प्रायः सभी नए लेखक इस बात पर एकमत दिखाई पड़ते हैं कि नए प्रतिमानों का संबंध रस से नहीं हो सकता; क्योंकि "कविता से रस का लुप्तीकरण अब विवादास्पद नहीं रह गया है।" "दिन में सैकड़ों बार 'हृदय की अनुभूति', हृदय की अनुभूति' चिल्लाएंगे, पर 'रस' का नाम सुनकर ऐसा मुँह बनाएंगे मानो उसे न जाने कितना पीछे छोड़ आये हैं। भलेमानुस इतना भी नहीं जानते कि हृदय की अनुभूति ही साहित्य में 'रस' और 'भाव' कहलाती है।" 

आचार्य शुक्ल ने जहाँ रस को हृदय की अनुभूति के रूप में निरूपित किया है, वहीं आगे यह भी लिखा है कि "शब्द-शक्ति, रस और अलंकार, ये विषय-विभाग काव्य-समीक्षा के लिए इतने उपयोगी हैं कि इनको अंतर्भूत करके संसार की नई-पुरानी सब प्रकार की कविताओं की बहुत ही सूक्ष्म, मार्मिक और स्वच्छ आलोचना हो सकती है। रिचर्ड्स जैसे वर्तमान अंग्रेजी समालोचक किस प्रकार अब समीक्षा में बहुत-कुछ भारतीय पद्धति का अवलंबन करके कूड़ा-करकट हटा रहे हैं, वह मैं शब्द -शक्ति के प्रसंग में दिखा चुका हूँ।"

 "शब्द-शक्ति के प्रसंग में आचार्य शुक्ल का कथन इस प्रकार है : "शब्द-शक्ति का विषय बड़े महत्व का है। वर्तमान साहित्य-सेवाओं को इसके संबंध में विचार-परंपरा जारी रखना चाहिए। काव्य की मीमांसा या स्वच्छ समीक्षा के लिए यह उपयोगी सिद्ध होगी।" (कविता के नये प्रतिमान- नामवर सिंह)



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