नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

इस राह से गुजरते हुए- दिवाकर मुक्तिबोध

 "इसमें दो राय नहीं कि राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में घी-दूध की नदियां बहने लगी हैं। धन का अपार सैलाब उमड़ रहा है। लेकिन, यह कुछ हजार लोगों की मुट्ठियों में कैद है। हजारों करोड़ रुपये के निर्माण एवं विकास कार्यों में मलाई खाने का अवसर इन्हीं लोगों को मिल रहा है। स्व. राजीव गांधी की वह ऐतिहासिक स्वीकारोक्ति राज्य के संदर्भ में अभी भी एकदम सटीक है कि विकास के मद में राज्य (उन्होंने केंद्र कहा था) से चला एक रुपया गरीब गांव के किसी गरीब की कुटिया तक पहुंचते पहुंचते मात्र 15 पैसे रह जाता है। भ्रष्टाचार की ऐसी कथा शायद ही किसी और राज्य में सुनाई दें।" (इस राह से गुजरते हुए- दिवाकर मुक्तिबोध)




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