"इसमें दो राय नहीं कि राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में घी-दूध की नदियां बहने लगी हैं। धन का अपार सैलाब उमड़ रहा है। लेकिन, यह कुछ हजार लोगों की मुट्ठियों में कैद है। हजारों करोड़ रुपये के निर्माण एवं विकास कार्यों में मलाई खाने का अवसर इन्हीं लोगों को मिल रहा है। स्व. राजीव गांधी की वह ऐतिहासिक स्वीकारोक्ति राज्य के संदर्भ में अभी भी एकदम सटीक है कि विकास के मद में राज्य (उन्होंने केंद्र कहा था) से चला एक रुपया गरीब गांव के किसी गरीब की कुटिया तक पहुंचते पहुंचते मात्र 15 पैसे रह जाता है। भ्रष्टाचार की ऐसी कथा शायद ही किसी और राज्य में सुनाई दें।" (इस राह से गुजरते हुए- दिवाकर मुक्तिबोध)
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