नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 11 दिसंबर 2019

संस्कृति के चार अध्याय- रामधारी सिंह दिनकर

 'लगभग दो वर्षों के अध्ययन के पश्चात मेरे सामने यह सत्य उद्भासित हो उठा कि भारतीय संस्कृति में चार बड़ी क्रांतियाँ हुईं हैं और हमारी संस्कृति का इतिहास उन्हीं चार क्रांतियों का इतिहास है। पहली क्रान्ति तब हुई, जब आर्य भारतवर्ष में आए अथवा जब भारतवर्ष में उनका आर्येतर जातियों से सम्पर्क हुआ। 

आर्यों ने आर्येतर जातियों से मिलकर जिस समाज की रचना की, वही आर्यों अथवा हिन्दुओं का बुनियादी समाज हुआ और आर्य तथा आर्येतर संस्कृतियों के मिलन से जो संस्कृति उत्पन्न हुई, वही भारत की बुनियादी संस्कृति बानी। इस बुनियादी भारतीय संस्कृति के लगभग आधे उपकरण आर्यों के दिये हुए हैं और उसका दूसरा आधा आर्येतर जातियों का अंशदान है। 

दूसरी क्रान्ति तब हुई, जब महावीर और गौतम बुद्ध ने इस स्थापित धर्म या संस्कृति के विरुद्ध विद्रोह किया तथा उपनिषदों की चिंताधारा को खींचकर वे अपनी मनोवांछित दिशा की ओर ले गए। इस क्रान्ति ने भारतीय संस्कृति की अपूर्व सेवा की, किन्तु अन्त में, इसी क्रान्ति के सरोवर में शैवाल भी उत्पन्न हुए और भारतीय धर्म तथा संस्कृति में जो गंदलापन आया, वह, काफी दूर तक, इन्हीं शैवालों का परिणाम था। 

तीसरी क्रान्ति उस समय हुई, जब इस्लाम, विजेताओं के धर्म के रूप में, भारत पहुंचा और इस देश में हिंदुत्व के साथ उसका संपर्क हुआ। और चौथी क्रान्ति हमारे आपने समय में हुई, जब भारत में यूरोप का आगमन हुआ तथा उसके संपर्क में आकर हिंदुत्व व इस्लाम, दोनों ने नवजीवन का अनुभव किया। इस पुस्तक में इन्हीं चार क्रान्तियों का संक्षिप्त इतिहास है।  (संस्कृति के चार अध्याय- रामधारी सिंह दिनकर)



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