नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 31 मार्च 2020

“आभिजात्य”


“वह” अब मध्यम वर्ग से धीरे-धीरे आभिजात्य वर्ग की ओर बढ़ रहे थे. इसलिए अब उन्होंने अपनी मध्यम वर्ग वाली आदतें धीरे-धीरे छोडनी शुरू कर दी थी. जैसे कि, फल-सब्जियां इत्यादि जो वह पहले सस्ता हो जाने का इन्तजार करते थे फिर उन्हें खरीदते थे. चावल, दाल और अन्य दैनिक वस्तुओं को कीमतों के आधार पर तय करते थे कि कम कीमत वाली वस्तुएं ही खरीदी जाएं. बच्चों के लिए स्कूल ड्रेस लेना हो या जूते खरीदने हों, बहुत मोलभाव करके खरीदते थे. ब्रांडेड कपड़ों और वस्तुओं की खरीदी से बचते थे. कभी फिल्म देखने जाना हो तो खुद और बीवी-बच्चों को घर से ही खाना-नास्ता खिलाकर निकलते थे ताकि बच्चे फिल्म देखने के समय थियेटर के मंहगे समोसे या पॉपकार्न खरीदने की जिद न करें.
मगर “वह” जबसे मध्यम वर्ग से कुछ आगे निकलकर आभिजात्य वर्ग में शामिल होने लगे तो उन्होंने उस वर्ग की आदतें अपनानी शुरू कर दीं, जैसे कि मंहगे, ब्रांडेड कपडे, जूते, परफ्यूम इत्यादि खरीदने शुरू कर दिए. किराने की दुकान पर पहुँचते ही (अभी तक उनके शहर में शापिंग माल जैसी व्यवस्था का उदय नहीं हुआ था) ज़रा ऊँची आवाज में दुकानवाले को सामान की लिस्ट पकड़ाकर उसे समझाते हुए बोलते “देख लो भाई, सारे सामन ज़रा अच्छे और ऊँचे ब्रांड के देना”.
दुकानदार भी समझदार किस्म का था. वह उन्हें चने के झाड में चढ़ाये रखता और चुन-चुनकर मंहगी और अनावश्यक वस्तुएं भी पकड़ा देता. बिल देखकर उनकी हार्टबीट तो ज़रा बढ़ जाती मगर अपनी अभिजात्यता का लिहाज करके वह उसे नियंत्रित कर लेते और कुछ बोल न पाते. बिल की रकम पकड़ाकर सामन जल्दी से घर भिजवाने की हिदायत देकर वह वहां से निकल लेते. सब्जी बाजार से सब्जियां या फल वही खरीदते जो बेमौसम और बाजार में सबसे मंहगा होता. एक दिन वह सब्जी खरीदने निकले तो चुन-चुनकर मंहगी और बे-मौसम की सब्जियां खरीद डाली मगर टमाटर न खरीद पाए क्योंकि उस दिन सारे बाजार में सस्ता और एक ही भाव में टमाटर बिक रहा था. उन्होंने काफी खोजा मगर उन्हें मंहगा टमाटर कहीं नहीं मिला. हारकर वह बिना टमाटर लिए ही बाजार से लौट आये.
पत्नी ने जब सब्जी का थैला देखा तो उन्हें टमाटर कहीं नजर न आया. उन्होंने पूछा कि टमाटर कहाँ है? तो वह अपनी दुविधा बताने लगे कि अच्छा और मंहगा टमाटर नहीं मिलने से उन्होंने नहीं खरीदा. यह सुनकर पत्नी ने अपना माथा पीट लिया और उन्हें घूरते हुए भारी और ठंडी आवाज में कहा कि “आपको पता है न कि आज शाम को मेरी कुछ सहेलियां डिनर पर आने वाली हैं”.... 
कृष्ण धर शर्मा 25.10.2019 
समाज की बात
समाजकीबात
Samaj ki baat
samajkibaat

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें