नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 31 मार्च 2020

“अ” और “ब” के चबूतरे


एक दिन “अ” और “ब” में लड़ाई हुई. लड़ाई घर के बाहर बने चबूतरे को लेकर थी. “ब” ने चबूतरे की मरम्मत करवाते समय उसके आकार में बित्ते भर का इजाफा कर लिया था इसलिए “अ” ने “ब” को पहले प्यार से समझाया फिर बहस करने पर धमकाया भी. मगर “ब” ने कहा “कि तुम मेरे चबूतरे से क्यों चिढ़ते हो! तुमको बहुत बुरा लग रहा है तो तुम भी अपना चबूतरा थोडा सा बढ़ा लो.”
“अ” ने भड़कते हुए कहा कि “पागल हो गए हो क्या! इससे इस रास्ते से आने-जाने वालों को परेशानी नहीं हो जाएगी क्या!”
“ब” ने कहा “कोई परेशानी नहीं होगी. थोड़े दिन के लिए असुविधा होगी मगर बाद में आदत पड़ जाएगी. फिर कोई कुछ नहीं बोलेगा.”
“अ” को “ब” कि बात जंच गई और उसने भी रास्ते की तरफ अपना चबूतरा बित्ता भर बढ़ा लिया. अब दोनों पड़ोसी अपने-अपने चबूतरे पर बैठ कर दुनिया-जहान की बातें करते हुए खुश रहते हैं और रास्ते से गुजरने वालों की परेशानियाँ को अनदेखा करते रहते हैं. 
कृष्ण धर शर्मा 7-9-2019  
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