मैंने नीलू से कहा कि “भाई क्यों नहीं तुम उज्ज्वला योजना में मिले
गैस सिलेंडर को भरवा देते! कम से कम तुम्हारी माँ को दिनभर लकड़ी के लिए जंगल में
तो नहीं भटकना पड़ेगा और तुम्हारी पत्नी को भी खाना बनाते समय धुएं में परेशान नहीं
होना पड़ेगा!”
नीलू ने मेरी बात को टालना चाहा तो मैंने फिर उसे समझाते हुए कहा
“देखो भाई, सीधा सा गणित है. अगर तुम्हारी माँ पूरे महीने में 10 दिन भी लकड़ी
चुनने जंगल जाती हैं तो 10 दिन की मजदूरी कम से कम 2000 रूपये होती है न! और गैस
सिलेंडर 750 रूपये में भी भरवाते हो तो वह कम से कम 45 दिन तो चलेगा ही न! फिर
फायदा किस्में है!”
नीलू ने मुस्कुराते हुए कहा कि “घर काम के लिए तो बीवी है ही, फिर माँ
दिनभर घर में बैठकर करेगी भी क्या! वह इस बुढ़ापे में कहीं मजदूरी तो कर नहीं सकती!
और जंगल नहीं काटेंगे तो हमें नए खेत कैसे कब्ज़ा करने को मिलेंगे!
नीलू ने एक ही झटके में मेरे सारे गणित पर पानी फेर दिया और मैं उसका
गणित समझने की कोशिश करता रह गया.
कृष्ण धर
शर्मा 12.8.2019
समाज की बातसमाजकीबात
Samaj ki baat
samajkibaat
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें