"वकील- हां, अब आये राह पर। यह मरदों की सी बात है। अपने जीवन की रक्षा करना शास्त्र का पहला नियम है। लेकिन अब भूलकर भी देशभक्ति की डींग न मारियेगा। इस काम के लिए बड़ी दृढ़ता और आत्मिक बल की आवश्यकता है। स्वार्थ और देशभक्ति में विरोधात्मक अंतर है। देश पर मिट जानेवाले को देश-सेवक का सर्वोच्च पद प्राप्त होता है, वाचालता और कोरी कलम घिसने से देश-सेवा नहीं होती।" (आखिरी तोहफ़ा- प्रेमचंद)
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