महासू देवता मंदिर, हनोल
महासू देवता मंदिर उत्तराखंड के देहरादून जिले के जनजाति क्षेत्र चकराता ब्लॉक के हनोल में स्थित है। यह देहरादून एवं उत्तरकाशी जिले की सीमा पर टौंस (तमसा) नदी के किनारे बसा एक छोटा सा गांव है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार 9 वीं शताब्दी में सम्पूर्ण क्षेत्र में किरमिर नाम के दानव का आतंक था। उस से सभी जन मानस बहुत परेशान थे। समस्त जनता को इस दानव के आतंक से छुटकारा दिलाने हेतु "हुणा भाट" नाम के एक ब्राह्मण ने कश्मीर जा कर शिव और शक्ति दोनों की पूजा अर्चना की। उनकी प्रार्थना से खुश हो कर जब शिव और शक्ति ने उनसे उपासना का कारण पूछा तो उन्होंने आपबीती सुनाई। इसके बाद शिव जी ने उन्हें एक दिव्य हल दिया और बोला कि इस से अपने खेत को जोतना तुम्हारी समस्या का समाधान मिल जायेगा। हुणा भाट वो दिव्य हल लेकर वापस अपने गांव की ओर चल दिए। जैसे ही उन्होंने हल जोतना शुरू किया उनके खेत से एक एक कर के चार देव प्रकट हुए जिनमें सबसे पहले
महासू जिन्हें बोठा भी कहा जाता है फिर बाशिक फिर पवासी एवं अंत में चाल्दा।
आगे चलकर इन्हीं देवताओं ने समस्त क्षेत्र को दानव मुक्त किया। तभी से सम्पूर्ण देहरादून के जौनसार बावर, कांडोई भरम, देवघार एवं उत्तरकाशी जिले के बंगान, कोठी गाढ़ आदि क्षेत्र एवं हिमाचल प्रदेश का भी कई हिस्सा महासू देवता की पूजा करता है।
इनके मंदिर का निर्माण जौनसार की पौराणिक शैली के अनुसार हुआ है जिसमें मंदिर तीन हिस्सो में बटा रहता है, पहला प्रांगण जिसमे देवता की पूजा अर्चना में बजने वाले वाद्य यंत्र रखे जाते है, उसके दूसरा कमरा जिसमें कि देवता जी के हथियार इत्यादि रखे जाते है और श्रद्धालुओं को भी इसी कमरे तक जाने की अनुमति होती है, एवं अंत में तीसरा कमरा जिसे की भंडार एवं भू गर्भ गृह भी कहा जाता है देव पालकी इसी में रहती है एवं यहां पर पुजारी के अलावा अन्य किसी भी व्यक्ति के प्रवेश कि अनुमति नहीं होती। माहसू देवता को कई त्यौहार समर्पित किए जाते है जिनमे सबसे प्रमुख जागरा, जखोली, नूनाई, विशू एवं जौंदोई इत्यादि है। आज भी क्षेत्र के लोग पुलिस या कानून से अधिक भरोसा म्हासू देवता के न्याय पर करते है।
(साभार- सचिन पवार)
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#कृष्णधर शर्मा #krishnadhar sharma
#KD Sharma
महासू देवता मंदिर उत्तराखंड के देहरादून जिले के जनजाति क्षेत्र चकराता ब्लॉक के हनोल में स्थित है। यह देहरादून एवं उत्तरकाशी जिले की सीमा पर टौंस (तमसा) नदी के किनारे बसा एक छोटा सा गांव है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार 9 वीं शताब्दी में सम्पूर्ण क्षेत्र में किरमिर नाम के दानव का आतंक था। उस से सभी जन मानस बहुत परेशान थे। समस्त जनता को इस दानव के आतंक से छुटकारा दिलाने हेतु "हुणा भाट" नाम के एक ब्राह्मण ने कश्मीर जा कर शिव और शक्ति दोनों की पूजा अर्चना की। उनकी प्रार्थना से खुश हो कर जब शिव और शक्ति ने उनसे उपासना का कारण पूछा तो उन्होंने आपबीती सुनाई। इसके बाद शिव जी ने उन्हें एक दिव्य हल दिया और बोला कि इस से अपने खेत को जोतना तुम्हारी समस्या का समाधान मिल जायेगा। हुणा भाट वो दिव्य हल लेकर वापस अपने गांव की ओर चल दिए। जैसे ही उन्होंने हल जोतना शुरू किया उनके खेत से एक एक कर के चार देव प्रकट हुए जिनमें सबसे पहले
महासू जिन्हें बोठा भी कहा जाता है फिर बाशिक फिर पवासी एवं अंत में चाल्दा।
आगे चलकर इन्हीं देवताओं ने समस्त क्षेत्र को दानव मुक्त किया। तभी से सम्पूर्ण देहरादून के जौनसार बावर, कांडोई भरम, देवघार एवं उत्तरकाशी जिले के बंगान, कोठी गाढ़ आदि क्षेत्र एवं हिमाचल प्रदेश का भी कई हिस्सा महासू देवता की पूजा करता है।
इनके मंदिर का निर्माण जौनसार की पौराणिक शैली के अनुसार हुआ है जिसमें मंदिर तीन हिस्सो में बटा रहता है, पहला प्रांगण जिसमे देवता की पूजा अर्चना में बजने वाले वाद्य यंत्र रखे जाते है, उसके दूसरा कमरा जिसमें कि देवता जी के हथियार इत्यादि रखे जाते है और श्रद्धालुओं को भी इसी कमरे तक जाने की अनुमति होती है, एवं अंत में तीसरा कमरा जिसे की भंडार एवं भू गर्भ गृह भी कहा जाता है देव पालकी इसी में रहती है एवं यहां पर पुजारी के अलावा अन्य किसी भी व्यक्ति के प्रवेश कि अनुमति नहीं होती। माहसू देवता को कई त्यौहार समर्पित किए जाते है जिनमे सबसे प्रमुख जागरा, जखोली, नूनाई, विशू एवं जौंदोई इत्यादि है। आज भी क्षेत्र के लोग पुलिस या कानून से अधिक भरोसा म्हासू देवता के न्याय पर करते है।
(साभार- सचिन पवार)
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