कोई-कोई लोग ऐसे हैं कि वे अपने मित्र के घर के भीतर बिना ही सूचना दिए चले जाते हैं और दिन भर में जितने बार उन्हें फुरसत मिलती है उतने ही बार मित्र के यहां पहुंचते हैं। ऐसे लोग घने मित्र होने पर भी अपनी कदर खो देते हैं। मित्र के घर में जाकर उसकी हर एक चीज बड़े गौर से देखना, उसकी किताबें इधर-उधर उठाना, और उसके हर एक काम में अपनी राय देने बड़प्पन के बिल्कुल विरुद्ध है। यद्यपि तुम इसका अधिकार रखते हो कि अपने मित्र के घर को अपना ही घर समझो, तो भी इससे यह सिध्द नहीं होता कि तुम अनजाने लोगों को भी अपने साथ उसके खास कमरे में ले जाओ।
मुलाकात का सबसे अच्छा समय सवेरे के सात बजे से नौ बजे तक और शाम के चार बजे से सात बजे तक है। (छत्तीसगढ़ मित्र- छत्तीसगढ़ की प्रथम हिन्दी मासिक पत्रिका, वर्ष 2सरा अंक 6वां)
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